स्वर्ण मंदिर में हारमोनियम की जगह पारंपरिक वाद्ययंत्रों के इस्तेमाल का आदेश

अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) को हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) अमृतसर से तीन साल के भीतर हारमोनियम (Harmonium) को बदलने का आदेश दिया है ताकि कीर्तन, या गुरबानी का गायन, पारंपरिक स्ट्रिंग वाद्ययंत्रों के साथ हो सके। आरम्भ में रबाब का इस्तेमाल किया जाता था।

हारमोनियम क्यों बदला जा रहा है?

  • अकाल तख्त के अनुसार, हारमोनियम औपनिवेशिक जड़ों वाला एक वाद्य यंत्र है, इसलिए यह गुरबानी के चित्रण के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम नहीं है।
  • उल्लेखनीय है कि हर दिन, 15 रागी जत्थे, या भजन गायकों के समूह, हरमंदिर साहिब में 20 घंटे के लिए मुख्य रूप से 31 रागों में से एक का गायन के लिए तैनात किए जाते हैं, जो दिन और मौसम के समय के आधार पर चुने जाते हैं।

हारमोनियम का इतिहास

  • हारमोनियम को 1840 में फ्रांस के एलेक्जेंडर डेबेन (Alexandre Debain) द्वारा विकसित किया गया था और पेटेंट कराया गया था।
  • हारमोनियम पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रधान वाद्य यंत्र बन गया था, जिसे चर्च में बजाया जाता था, और कई संगीत निर्माताओं द्वारा उपयोग किया जाता था।
  • 1930 के दशक में, इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यंत्र के आगमन के साथ, हारमोनियम की मांग घटने लगी।
  • भारत में हारमोनियम अंग्रेज लेकर आये थे जिन्होंने हारमोनियम को भारत के घरों और चर्चों तक पहुंचाया।
  • भारत में, संगीतकार द्वारकानाथ घोष, जिनके पास संगीत वाद्ययंत्र की एक निर्माण इकाई थी, ने हारमोनियम में बदलाव किये
  • यूरोपीय हारमोनियम में कीबोर्ड के नीचे पैर से चलने वाली धौंकनी को पीछे की ओर हाथ से संचालित धौंकनी से बदल दिया गया था।
  • भारतीय शास्त्रीय संगीत में सामंजस्य बनाने के लिए ड्रोन नॉब्स को यंत्र में जोड़ा गया था।
  • वाद्य यंत्र के भारतीय संस्करण में एक स्केल-चेंजिंग तकनीक भी जोड़ी गई। 1915 तक भारत हारमोनियम का अग्रणी निर्माता बन गया था। यह नया वाद्य यहंतर अधिक टिकाऊ, किफायती था और इसका रखरखाव और मरम्मत भी आसान था।

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