समान नागरिक संहिता (UCC): उत्तराखंड में पांच सदस्यीय समिति का गठन
उत्तराखंड सरकार ने 28 मई को राज्य में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code: UCC) के कार्यान्वयन पर एक मसौदा तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। राज्य के गृह विभाग द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई के नेतृत्व वाली समिति में प्रमोद कोहली (सेवानिवृत्त न्यायाधीश), सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, सेवानिवृत्त आईएएस शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल शामिल होंगे।
- पैनल राज्य में रहने वाले लोगों के नागरिक मामलों को नियंत्रित करने वाले सभी प्रासंगिक कानूनों की जांच करेगा और शादी, तलाक, संपत्ति के अधिकार, उत्तराधिकार और गोद लेने से संबंधित सभी लागू कानूनों पर एक रिपोर्ट तैयार करेगा।
अनुच्छेद 44 और समान नागरिक संहिता
- कई विशेषज्ञों के अनुसार राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) में संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता की घोषणा एक सकारात्मक दायित्व के रूप में उभरती है, न कि राज्य के कर्तव्य के रूप में।
- अनुच्छेद 44 कहता है “राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा”।
- समान नागरिक संहिता पर्सनल लॉ की जगह ऐसा कानून का प्रस्ताव करती है जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होंगे, चाहे उनका धर्म, लिंग, जाति आदि कुछ भी हो।
- हालाँकि, यह अनुच्छेद राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत आता है, इसलिए उन्हें केवल दिशानिर्देश माना जाता है और उनका उपयोग करना अनिवार्य नहीं है, जैसा के मूल अधिकारों के मामले में है।
- पर्सनल लॉ वे हैं जो लोगों को उनके धर्म, जाति, आस्था और विश्वास के आधार पर शासित करते हैं।
- हिंदू और मुस्लिम दोनों के पर्सनल लॉ उनके धार्मिक ग्रंथों और धर्मग्रंथों पर आधारित हैं। हिंदू पर्सनल लॉ प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदों, स्मृतियों और उपनिषदों और न्याय, समानता, विवेक आदि की आधुनिक अवधारणाओं पर आधारित है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्य रूप से कुरान और सुन्नत पर आधारित है (जो पैगंबर मोहम्मद की बातों और उनके जीवन के तरीके से संबंधित है)। कुरान के अलावा, इज्मा (कानूनी मुद्दों पर विद्वान मुस्लिम न्यायविदों के बीच सहमति) और क़ियास को भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के स्रोत के रूप में माना जाता है।
- इसी तरह, ईसाई व्यक्तिगत कानून ग्रंथों (बाइबल), परंपराओं, तर्क और अनुभव पर आधारित है।
- एक समान नागरिक संहिता की शुरूआत से ऐसे सभी संहिताबद्ध कानूनों को रद्द करने और एक ऐसा कानून लाने की संभावना है जो सभी नागरिकों के लिए समान हो। इसके अलावा, व्यक्तिगत कानून अक्सर परस्पर विरोधी और विरोधाभासी होते हैं और सभी अदालतों और क्षेत्रों में समान रूप से लागू नहीं होते हैं। समान नागरिक संहिता की शुरूआत भी इस समस्या को हल करने का प्रयास करती है।
संविधान के अनुसार क्या है राज्य (State) ?
- संविधान का अनुच्छेद 12 संघ और राज्य सरकारों , संसद और राज्य विधानमंडलों और यहां तक कि स्थानीय प्राधिकारों को “राज्य” की परिभाषा में शामिल करता है।
संविधान की सातवीं अनुसूची
- संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची की प्रविष्टि पांच संघ और राज्यों, दोनों को विवाह, तलाक, शिशुओं, नाबालिगों, गोद लेने, वसीयत और उत्तराधिकार पर कानून बनाने का अधिकार देती है।
समान नागरिक संहिता वाला गोवा एकमात्र राज्य
- गोवा एकमात्र राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा का पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 राज्य में प्रचलित एक समान परिवार कानून का एक उदाहरण है।
जोस पाउलो कॉटिन्हो मामला, 2019
- वर्ष 2019 में जोस पाउलो कॉटिन्हो के फैसले ने सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि वास्तव में, गोवा ” भारतीय राज्य का ऐसा एक चमकदार उदाहरण” है, जिसमें एक समान नागरिक संहिता लागू है।
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