संरक्षित वनों में 1 किलोमीटर के दायरे को ‘इको-सेंसिटिव जोन’ घोषित किया जाये-सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने 3 जून, 2022 को निर्देश दिया कि कि राष्ट्रीय उद्यानों (National Parks) और वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuaries) जैसे संरक्षित वन के सीमांकन रेखा से कम से कम एक किलोमीटर के दायरे को अनिवार्य रूप से पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (Eco Sensitive Zone: ESZ) घोषित किये जाये।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

  • ESZ के 1 किलोमीटर के दायरे क्षेत्र के भीतर किसी भी प्रकार के निर्माण और खनन को मंजूरी नहीं दी जा सकती।
  • यदि ESZ पहले से ही निर्धारित है जो 1 किमी बफर ज़ोन से अधिक है तो ऐसी विस्तारित सीमा जारी रहेगी, अदालत ने कहा।
  • बेंच ने यह भी कहा कि ESZ सीमा में वर्तमान में चल रही गतिविधियां मुख्य वन संरक्षक की अनुमति से ही जारी रह सकती हैं।
  • वर्तमान निर्णय दो मुद्दों पर दायर याचिका पर आया है; जामवा रामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (राजस्थान) में और उसके आसपास खनन और वाणिज्यिक गतिविधियां, और वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के आसपास पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) को निर्धारित करने वाले दिशानिर्देश।
  • जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंदर पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (इको सेंसिटिव जोन) होना चाहिए।
  • पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के मुख्य वन संरक्षक को ईएसजेड के भीतर मौजूद सभी निर्माणों की सूची तैयार करने और तीन माह के अंदर कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट पेश करने को कहा है। पीठ ने यह निर्देश एक लंबित जनहित याचिका ‘टी.एन… गोडावर्मन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में दिया।

क्या है इको सेंसिटिव जोन (ESZ)?

  • पर्यावरण मंत्रालय के दिशानिर्देश बताते हैं कि राष्ट्रीय उद्यानों, जंगलों और अभयारण्यों के आसपास ESZ घोषित करने का उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों के लिए सुरक्षा के रूप में एक बफर (shock absorbers) बनाना है। सरकार ऐसे क्षेत्रों में गतिविधियों को नियंत्रित और प्रबंधित करती है, ताकि उच्च संरक्षित क्षेत्रों को कोई बाहरी नुकसान न हो।
  • इको सेंसिटिव जोन को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
  • हालांकि, ESZ क्षेत्र सीमांकन अलग-अलग संरक्षित क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होती है। इसकी चौड़ाई एक संरक्षित क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती है।
  • वन्यजीव संरक्षण रणनीति 2002-2005 और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार क्षेत्र आमतौर पर संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी तक विस्तारित हो सकता है।
  • यदि संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण पैच, लैंडस्केप लिंकेज के लिए महत्वपूर्ण हैं, तो 10 किलोमीटर से अधिक चौड़ाई वाले क्षेत्रों को भी इको-सेंसिटिव जोन के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, ESZ के एक क्षेत्र का वितरण और विनियमन की सीमा चारों ओर एक समान नहीं हो सकती है और यह चौड़ाई और सीमा भिन्न हो सकती है।

इको सेंसिटिव जोन (ESZ) में प्रतिबंधित गतिविधियां

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इको-सेंसिटिव जोन में निम्नलिखित गतिविधियों पर रोक लगाने का प्रस्ताव किया है। ये हैं:
  • वाणिज्यिक खनन, पत्थर उत्खनन और क्रशिंग इकाइयां
  • मौजूदा आरा मिलों का विस्तार या नयी की स्थापना,
  • ईंट भट्टों की स्थापना,
  • प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग (वायु, जल, मिट्टी, ध्वनि आदि) की स्थापना,
  • प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं (HEP) की स्थापना,
  • लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग की स्थापना,
  • राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे जैसी पर्यटन गतिविधियाँ,
  • अपशिष्टों का निर्वहन या कोई ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन।

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