वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने पर दिल्ली उच्च न्यायालय के जजों की खंडित राय

Image credit: Delhi High Court

दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार या दुष्कर्म (Marital rape) को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिका पर पर 11 मई , 2022 को बंटा हुआ फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ के एक न्यायाधीश राजीव शकधर ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376B व धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। उन्होंने निर्णय दिया कि पति या अलग रह रहे पति द्वारा 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ उसकी सहमति के बगैर यौन संबंध बनाना, उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। दूसरी ओर न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने कहा कि धारा 375 के अपवाद-2 असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है। IPC के सेक्शन 375 में जो अपवाद-2 है वह वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है और यह दिखाता है कि विवाह में एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 क्या है?

  • IPC की धारा 375 उन कृत्यों को परिभाषित करती है जो एक पुरुष द्वारा यौन संबंध को बलात्कार की श्रेणी में शामिल होंगे। हालाँकि, यह प्रावधान दो अपवादों को भी निर्धारित करता है। वैवाहिक बलात्कार (Marital rape) को अपराध से मुक्त करने के अलावा, यह उल्लेख करता है कि चिकित्सा प्रक्रियाओं को बलात्कार नहीं माना जाएगा।

धारा 375 के अपवाद 2

  • धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है कि “किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य, यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है, बलात्कार नहीं है”। अक्टूबर 2017 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 15 वर्ष को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया।

क्या है मामला ?

  • गैर सरकारी संगठन आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन, एक पुरुष और एक महिला द्वारा दायर जनहित याचिकाओं में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376बी व धारा 375 के अपवाद 2 को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय वर्ष 2017 से इस मामले में दलीलें सुन रहा है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि देश में वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाया गया है।
  • इस वैवाहिक बलात्कार अपवाद को हटाने की आवश्यकता को भारत के विधि आयोग ने 2000 में खारिज कर दिया था, जबकि यौन हिंसा पर भारत के कानूनों में सुधार के कई प्रस्तावों पर विचार किया था।

इतिहास पर एक नजर

  • वर्ष 1860 में भारतीय दंड संहिता (IPC) लागू हुई, जिसमें 10 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के संबंध में वैवाहिक बलात्कार अपवाद का प्रावधान किया गया।
  • 1940 में IPC में संशोधन किया गया और 10 साल की उम्र सीमा को बदल कर 15 वर्ष किया गया।
  • 11 जनवरी, 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया और IPC में वैवाहिक बलात्कार अपवाद को चुनौती देने वाली पहली याचिका पर पक्ष रखने को कहा।
  • 29 अगस्त, 2017 को केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है।
  • 11 अक्टूबर, 2017 को उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को खारिज कर दिया और व्यवस्था दी कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, अगर पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं है।
  • 18 जनवरी, 2018 को दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार पहले से ही कानून के तहत क्रूर अपराध है और कोई महिला अपने पति के साथ यौन संबंध स्थापित करने से इनकार करने की हकदार है।
  • 7 जनवरी, 2022 को उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर रोजाना आधार पर सुनवाई शुरू की।

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