वैज्ञानिकों के अनुसार अजनाला कुएँ में मिले 282 कंकाल, 1857 में मारे गए नेटिव बंगाल इन्फैंट्री सैनिकों के थे

हाल के डीएनए-आधारित साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि पंजाब के अमृतसर के अजनाला शहर (Ajnala) में एक परित्यक्त कुएं में फेंके गए मानव अवशेष 282 युवा भारतीय सैनिकों के थे। वे 26वीं नेटिव बंगाल इन्फैंट्री बटालियन से संबंधित हैं, जिन्हें 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के बाद बेरहमी से मार दिया गया था।

इस कुएं को लोग कालियांवाला कुआं (Kalianwala kuan) भी कहते हैं। अजनाला कस्‍बा है और गांव का नाम है खूह कालियांवाला (Khuh Kalianwala)।

अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय सैनिक गंगा के मैदानों के थे। पुरातत्वविदों ने इस साइट को 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान किसी एक घटना से जुड़े सबसे बड़े कंकाल के अवशेष कहा है।

शहीदों की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और स्थिर आइसोटोप विश्लेषण का इस्तेमाल किया। डीएनए को 50 अच्छी गुणवत्ता वाले दांतों के नमूनों से निकाला गया और जैविक नमूनों से आनुवंशिक उत्पत्ति का निर्धारण करने के लिए माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (एमटीडीएनए) विश्लेषण इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा, 85 दांतों के नमूने के लिए ऑक्सीजन आइसोटोप विश्लेषण का इस्तेमाल किया गया।

दांत, जबड़े के टुकड़े, कशेरुक, खोपड़ी, फलांग (उंगली या पैर की अंगुली की हड्डी), फीमर (जांघ की हड्डी), हंसली (कॉलर की हड्डी), हड्डियों के साथ-साथ कुछ सिक्के, आभूषण और पदक भी कुएं की साइट से निकाले गए थे।

26वीं बटालियन की मियांमीर छावनी में तैनात थी और इसमें बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश (पूर्वी) और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के सैनिक शामिल थे। कुछ ब्रिटिश अधिकारियों को मारने के बाद विद्रोहियों ने छावनी छोड़ दी। बाद में, उनमें से लगभग 282 को अगनाला के पास पकड़ लिया गया और उनका सफाया कर दिया गया।

1857 में अमृतसर के तत्कालीन सेवारत डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हेनरी कूपर ने अपनी किताब “The Crisis in the Punjab, from the 10th of May Until the Fall of Delhi” में बताया था कि कैसे ब्रिटिश अधिकारियों को बीफ और पोर्क-ग्रीस वाले कारतूसों के इस्तेमाल के लिए मियां मीर छावनी (वर्तमान में पाकिस्तान में लाहौर में) में तैनात भारतीय सैनिकों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था।

ये वही फ्रेडरिक हैं जिन्होंने भारतीय सेना की 26वीं नेटिव बंगाल इन्फैंट्री रेजिमेंट के सैनिकों की बेहद क्रूरता से हत्‍या करवाकर शवों को कुआं में फेकवा दिया था।

वर्ष 2014 में स्थानीय पुरातत्वविदों के एक शौकिया समूह द्वारा इस कुएं से कुछ कंकाल अवशेषों को निकालने के बाद मृतकों की उत्पत्ति का पता लगाने में रुचि पैदा हुई। उसी वर्ष, सरकार ने पंजाब विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी जे एस सहरावत के नेतृत्व में एक समूह को वैज्ञानिक रूप से मामले की जांच करने का काम सौंपा।

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