लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) का निर्माण
गुजरात के लोथल में ऐतिहासिक सिंधु घाटी सभ्यता क्षेत्र में पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) का निर्माण कर रहा है।
यह भारत में अपनी तरह का पहला परिसर है जिसमें भारत की समृद्ध और विविध समुद्री विरासत का प्रदर्शन किया जाएगा।
NMHC परियोजना की आधारशिला प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रखी गई थी और मास्टर प्लान के लिए सहमति मार्च 2019 में दी गई थी।
इस परियोजना को विभिन्न चरणों में पूरा करने की योजना है।
यह पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय की सागरमाला योजना के तहत एक प्रमुख परियोजना है जिसमें शिक्षा का दृष्टिकोण शामिल है।
नवीनतम तकनीक का उपयोग करके समुद्री विरासत को उपभोक्ता के अनुकूल तरीके से पेश किया जाएगा ताकि लोगों में जागरूकता का प्रचार किया जा सके।
NMHC परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए मंत्रालय ने इंडियन पोर्ट, रेल एंड रोपवे कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईपीआरसीएल), मुंबई को एक कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित किया है।
लोथल का ऐतिहासिक महत्व
वर्ष 1952 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्वविद् एस.आर. राव ने एक नए स्वतंत्र भारत में लोथल, कालीबंगा, धोलावीरा और राखीगढ़ी के स्थलों की खोज की।
हालांकि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नोडल स्थलों से यह 18 गुना छोटा है जो अब पाकिस्तान में हैं, लेकिन लोथल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत का पहला हड़प्पा स्थल है।
लोथल की योजना बनाते समय शहर को एक गढ़ या एक्रोपोलिस और एक निचले शहर में विभाजित करने के सिंधु घाटी सभ्यता के मानक का पालन किया गया था।
लोथल में खुदाई से दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात कृत्रिम गोदी (world’s oldest known artificial dock) का पता चला है, जो साबरमती नदी के एक पुराने चैनल से जुड़ी थी।
अन्य विशेषताओं में एक्रोपोलिस, निचला शहर, मनका कारखाना, गोदाम और जल निकासी व्यवस्था शामिल हैं।
कहते हैं लोथल दो शब्दों का मेल है; लोथ और थाल, जिसका गुजराती में अर्थ है ‘मृतकों का टीला’।
यह शहर 3700 ईसा पूर्व के दौरान बसा हुआ था और एक संपन्न व्यापारिक बंदरगाह था।
लोथल और कालीबंगा में घरों और सार्वजनिक स्थानों में पाई गई अग्नि-वेदियों (fire-altars) से संकेत मिलता है कि हड़प्पा के लोग अग्नि-देवता की पूजा करते थे। ज्वाला के मेहराब के नीचे तीन सिंधु मुहरों पर उकेरे गए सींग वाले देवता को ज्यादातर अग्नि देवता के साथ पहचाना जा सकता है।
लोथल के कब्रिस्तानों में संयुक्त शवाधान (joint-burials) की एक अनूठी प्रणाली थी जिसमें दो व्यक्तियों को एक साथ दफनाया जाता था।