राइट टू रिपेयर पर प्रारूप विकसित करने के लिये समिति का गठन

सतत खपत के माध्यम से LiFE/लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर दी एनवायरेन्मेंट) आंदोलन को गति देने के प्रयासों के तहत उपभोक्ता कार्य विभाग ने “राइट टू रिपेयर” (Right to Repair) के लिये एक प्रारूप विकसित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल की है।

भारत में उपभोक्ता उत्पादों में बायर्स द्वारा स्वयं मरम्मत करने या उनकी मरम्मत करने का प्रारूप तैयार करने का लक्ष्य स्थानीय बाजारों के उपभोक्ताओं तथा उत्पाद क्रेताओं को अधिकार सम्पन्न बनाना है।

इस कदम से डिवाइस के मूल निर्माताओं और तीसरे पक्ष के खरीददारों तथा विक्रेताओं के बीच कारोबार सरल बनेगा, उत्पादों की तर्कसंगत खपत को विकसित करने को मजबूती मिलेगी और इलेक्ट्रॉनिक-कचरे में कमी आएगी।

भारत में इसके शुरू हो जाने के बाद, उत्पादों के स्वरूप में भारी बदलाव आ जाएगा और थर्ड पार्टी द्वारा डिवाइस की मरम्मत/सुधार की अनुमति मिलने से आत्मनिर्भर भारत के जरिये रोजगार भी पैदा होंगे।

इस सम्बंध में विभाग ने एक समिति का गठन किया है।

क्या है राइट टू रिपेयर?

राइट टू रिपेयर का अर्थ है कि ग्राहकों को अब अपने क्षतिग्रस्त या टूटे हुए इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अधिकृत मरम्मत के लिए मूल निर्माताओं के पास वापस नहीं ले जाना होगा, और इसके बजाय वे फोन या लैपटॉप जैसी चीजों को स्वयं ठीक कर सकते हैं, या उन्हें कम लागत वाली स्वतंत्र मरम्मत की दुकानों में ले जा सकते हैं।

“राइट टू रिपेयर” के पीछे तर्क

“राइट टू रिपेयर” के पीछे तर्क यह है कि जब हम कोई उत्पाद खरीदते हैं, तो उसमें यह बात निहित होती है कि हम उसके पूरे मालिक हैं तथा इसके लिये उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि वह आसानी से तथा सस्ते में उत्पाद की मरम्मत या उसमें सुधार कर सके। इसके लिये उसे निर्माताओं के नखरे नहीं सहने पड़ें। बहरहाल, समय बीतने के साथ देखा जा रहा है कि “राइट टू रिपेयर” पर लगाम लगाई जा रही है। मरम्मत के काम में अनावश्यक विलंब होता है, और कभी-कभी उत्पादों की मरम्मत की बहुत ज्यादा कीमत वसूली जाती है। इसके कारण उपभोक्ता के पास कोई विकल्प नहीं बचता। अकसर पुर्जे उपलब्ध नहीं होते, जिसके कारण उपभोक्ता को मुश्किलों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

डिजिटल वारंटी कार्ड में यह लिखा होता है कि अगर उपभोक्ता ने किसी “गैर-मान्यताप्राप्त” मिस्त्री से उपकरण ठीक करवाया या दिखवाया, तो उपभोक्ता वारंटी का हक खो देगा। डिजिटल अधिकार प्रबंधन (डीआरएम) और प्रौद्योगिकीय संरक्षण उपाय (टीपीएम) से कॉपी-राइट रखने वालों को बहुत राहत मिलती है।

निर्माता “जानबूझकर कम समय तक चलने वाली” चीजें बनाते हैं। यह ऐसा तरीका है, जिसमें कोई भी गैजट एक खास समय तक ही चलता है और वह समय समाप्त हो जाने के बाद उसे बदलना पड़ता है। इस तरह खरीददार के अधिकारों को चोट पहुंचती है।

अन्य देशों में “राइट टू रिपेयर”

 दुनिया के तमाम देशों में “राइट टू रिपेयर” को माना जाता है। इन देशों में अमेरिका, यूके और यूरोपीय संघ शामिल हैं। अमेरिका में फेडरल ट्रेड कमीशन ने निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वे गलत गैर-प्रतिस्पर्धात्मक व्यवहार को सुधारें। उनसे कहा गया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उपभोक्ता भी चाहें तो खुद मरम्मत का काम कर लें या किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी से यह काम करवायें।

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