‘मूनलाइटिंग’ के चलते विप्रो ने अपने 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला

देश की दिग्गज सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां मूनलाइटिंग (moonlighting) खिलाफ कर्मचारियों पर कार्रवाई कर रही हैं। इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए विप्रो ने अपने 300 कर्मचारियों को कंपनी के साथ ही उनके प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में काम करने के कारण जॉब से निकाल दिया है।

क्या है मूनलाइटिंग?

जब कोई कर्मचारी किसी कंपनी में काम करते हुए वर्क ऑवर के बाद किसी अन्य कंपनी के लिए काम करते हैं तो इसे मूनलाइटिंग कहा जाता है।

इसे मूनलाइटिंग इसलिए कहा जाता है क्योंकिं ये काम आमतौर पर रात में या सप्ताहांत पर किया जाता है।

यह टर्म तब प्रसिद्ध हुआ जब अमेरिकियों ने अपनी आय के पूरक के लिए अपनी नियमित सुबह 9-से-शाम 5 बजे की नौकरियों के अलावा दूसरी नौकरियों की तलाश शुरू की।

कोरोना महामारी के दौरान वर्क फ्रॉम होम होने की वजह से स्टाफ में मूनलाइटिंग का चलन बढ़ा है।

भारत में फ़ूड डिलीवरी कंपनी स्विगी ने अपने कर्मचारियों को मूनलाइटिंग की अनुमति दी थी।

तो दूसरी ओर विप्रो के चेयरमैन रिषद प्रेमजी का कहना है कि मूनलाइटिंग कंपनी की पॉलिसी का बड़ा उल्लंघन है। उन्होंने कर्मचारियों की मूनलाइटिंग को कंपनी के साथ धोखा बताया है।

इसी तरह इंफोसिस ने भी ईमेल के जरिए कर्मचारियों को चेतावनी दी है। टीसीएस और आईबीएम जैसी IT कंपनियां भी मूनलाइटिंग का विरोध कर रही हैं।

हालाँकि, मोहनदास पाई इस मुद्दे पर प्रेमजी से असहमत हैं। इन्फोसिस के पूर्व निदेशक मोहनदास पाई मूनलाइटिंग को “धोखा” नहीं मानते हैं। उनके मुताबिक “रोजगार एक नियोक्ता के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट है जो दिन में ‘N’ घंटों के लिए लिए मुझे काम करने के लिए भुगतान करता है। अब उस समय के बाद मैं जो करता हूं वह मेरी आजादी है, मैं जो चाहता हूं वह कर सकता हूं,“।

केंद्र सरकार में मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भी कर्मचारियों का बचाव किया है। MeitY राज्य मंत्री चंद्रशेखर ने कहा कि कर्मचारियों पर शिकंजा कसना गलत है और उन्हें अपने सपनों का उड़ान भरने देना चाहिए।

error: Content is protected !!