भारत में कंगारुओं की तस्करी और विदेशी मूल के जानवरों के व्यापार पर कानून
हाल ही में, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर के विभिन्न हिस्सों से तीन कंगारुओं को बचाया गया था। इन कंगारुओं को बचा लिया गया और इलाज के लिए एक वन्यजीव पार्क में भेज दिया गया। इन कंगारुओं को भारत में तस्करी कर लाया गया था क्योंकि भारत में नहीं पाए जाते हैं और ऑस्ट्रेलिया की नेटिव प्रजाति हैं। अधिकारियों के अनुसार, तस्करी विरोधी अभियान के दौरान इन जानवरों को खुले में छोड़ दिया गया था।
पूर्वोत्तर गलियारे के माध्यम से तस्करी
तस्कर अक्सर गैर-देशी (non-native), विदेशी जानवरों (exotic animals) को म्यांमार के रास्ते भारत के सीमावर्ती राज्यों में लाते हैं।
भारत की तस्करी विरोधी खुफिया एजेंसी, राजस्व खुफिया निदेशालय (Directorate of Revenue Intelligence: DRI) के अनुसार भारत में विदेशी मूल के जानवरों की मांग में वृद्धि देखी गई है।
बैंकॉक, मलेशिया और अन्य दक्षिण पूर्व एशिया के शीर्ष पर्यटन स्थलों से जानवरों की तस्करी देश में की जाती है और पूरे भारत के शहरों में इन्हें प्रवेश कराया जाता है जहाँ इनकी खूब मांग है। तस्कर पूर्वोत्तर गलियारे का उपयोग विदेशी मूल के जानवरों को लाने के लिए करते हैं।
तस्करी के खिलाफ कानून
भारतीय वन्यजीव अधिकारी इन तस्करों या व्यापारियों पर मुकदमा नहीं चला सकते क्योंकि भारत का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (India’s Wildlife Protection Act) गैर-देशी तथा विदेशी मूल के जानवरों को संरक्षण प्रदान नहीं करता है।
देशी वन्यजीव प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध है, इसलिए तस्कर विदेशी प्रजातियों का अवैध व्यापार करने लगे हैं।
विदेशी मूल के जानवरों पर पर्यावरण मंत्रालय का परामर्श
22 नवंबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें जून और दिसंबर 2020 के बीच विदेशी वन्यजीव प्रजातियों के अवैध अधिग्रहण या कब्जे की घोषणा की गई थी।
भारत संकटापन्न प्रजातियों अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कन्वेंशन (CITIES) का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जो संकटापन्न पौधों और जानवरों के व्यापार की सुरक्षा और निगरानी करता है। लेकिन भारत में अभी भी इस बहुपक्षीय संधि को कोई कानूनी हथियार नहीं दिया है जिससे भारतीय कानून के तहत लागू नहीं किया जा सकता है।
वाणिज्य मंत्रालय के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय, ‘विदेशी वन्यजीव प्रजातियों’ (exotic wildlife species) के आयात और निर्यात की देखरेख करता है।
वर्ष 2020 में विदेशी वन्यजीव प्रजातियों पर घोषित नए नियमों के तहत, विदेशी जानवरों और पक्षियों के मालिकों और इन्हें रखने वालों को अपने राज्यों के मुख्य वन्यजीव वार्डन के साथ इन जानवरों को पंजीकृत करना होगा अर्थात उन्हें रखने की छूट दी गयी है।
वन्यजीव विभाग के अधिकारी भी ऐसी प्रजातियों की एक सूची तैयार करेंगे और ऐसे व्यापारियों के केंद्रों का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ताकि यह जांचा जा सके कि इन पौधों और जानवरों को स्वास्थ्यप्रद परिस्थितियों में रखा जा रहा है या नहीं।
इसके अतिरिक्त, स्टॉकिस्टों को अपना स्टॉक घोषित करने के लिए छह महीने (जून और दिसंबर 2020) का समय दिया गया था।
पर्यावरण मंत्रालय की एडवाइजरी में कहा गया है कि ‘विदेशी जीवित प्रजातियों’ (exotic live species) का मतलब जंगली जीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के परिशिष्ट I, II और III के तहत नामित जानवर होंगे।
इसमें वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूचियों की प्रजातियां शामिल नहीं होंगी।
एडवाइजरी में भारत में पहले से ही विदेशी जानवरों और उनकी संतति के आयात और प्रकटीकरण के प्रावधान हैं। एक जीवित विदेशी जानवर को आयात करने की कोशिश करने वाले व्यक्ति को एडवाइजरी के प्रावधानों के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय के पास लाइसेंस देने के लिए एक आवेदन जमा करना होगा।
एडवाइजरी जारी करने के पीछे प्रमुख कारण ऐसे जानवरों के व्यापार को विनियमित करना है क्योंकि जूनोटिक रोगों (जानवरों से फैलने वाले रोग) का मुद्दा वन्यजीवों से भी जुड़ा हुआ है।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, एडवाइजरी में कानून का बल नहीं है और माफी की लंबी अवधि देकर इसके अवैध व्यापार को संभावित रूप से प्रोत्साहित कर सकता है जो गंभीर खामियों से ग्रस्त है।
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