भारत की 34% तटरेखा कटाव का सामना कर रही है

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने एक प्रश्न के उत्तर में लोकसभा को सूचित किया कि भारतीय मुख्य भूमि की 6,907.18 किलोमीटर लंबी तटरेखा में से लगभग 34% कटाव की अलग-अलग श्रेणी के अधीन है, जबकि 26% एक अभिवृद्धि (accretional) प्रकृति का है और शेष 40% स्थिर स्थिति में है।

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MOES) का चेन्नई स्थित एक संलग्न कार्यालय ‘नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR)’ ने रिमोट सेंसिंग डेटा और जीआईएस मैपिंग तकनीकों का उपयोग करके 1990 से तटरेखा क्षरण की निगरानी कर रहा है।
  • मंत्रालय ने 6 अप्रैल को भुवनेश्वर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद अपराजिता सारंगी के एक सवाल के जवाब में कहा कि मुख्य भूमि की लगभग 6,907.18 किलोमीटर लंबी भारतीय तटरेखा का विश्लेषण 1990 से 2018 तक किया गया है।
  • प्रतिशत के संदर्भ में, देश के पूर्वी तट पर स्थित पश्चिम बंगाल की  534.35 किलोमीटर लंबी तटरेखा में से  1990 से 2018 की अवधि में लगभग 60.5% तट (323.07 किमी)  को कटाव का सामना करना पड़ा।
  • इसके बाद पश्चिमी तट पर केरल का स्थान है, जिसके पास  592.96 किमी लम्बा समुद्र तट है और इसका 46.4% (275.33 किमी) तट कटाव का सामना कर रहा है। वहीं  991.47 किमी की लंबी तटरेखा वाला तमिलनाडु  42.7% (422.94 किमी)   कटाव दर्ज किया।
  • 1,945.6 किमी की सबसे लंबी तटरेखा वाला गुजरात ने 27.06% (537.5 किमी) के साथ कटाव दर्ज किया। केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में, 41.66 किलोमीटर लंबी तटरेखा के साथ, इसके तट का लगभग 56.2% (23.42 किमी) कटाव दर्ज किया गया है।
  • मंत्रालय ने कहा कि 15वें वित्त आयोग ने राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) और राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (SDRMF) के निर्माण की सिफारिश की थी जिसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर (NDMF/SDMF) पर एक शमन कोष (mitigation fund ) भी शामिल था।

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