भारतीय जल में पहली बार एजूजैंथिली प्रवाल की चार नई प्रजातियां रिकॉर्ड की गयी

azooxanthellate coral (Flickr)

वैज्ञानिकों ने पहली बार भारतीय जल क्षेत्र से एजूजैंथिली (azooxanthellate) कोरल (मूंगा/कोरल) की चार प्रजातियों को रिकॉर्ड किया है। य़े चार प्रजातियां हैं; Truncatoflabellum crassum, T. incrustatum, T. aculeatum, और T. irregulare। कोरल के सभी चार समूह एक ही परिवार Flabellidae से हैं।

ये नए कोरल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के जल से मिले हैं।

सभी चार प्रजातियां पहले जापान से फिलीपींस और ऑस्ट्रेलियाई जल में पाई गई थीं, जबकि अदन की खाड़ी और फारस की खाड़ी सहित इंडो-वेस्ट पैसिफिक वितरण की सीमा के भीतर केवल T.crassum रिकॉर्ड की गई थी।

Azooxanthelate बनाम zooxanthelate

Azooxanthelate मूंगा कठोर कोरल का एक समूह है और चार नयी प्रजातियां एक अत्यधिक संकुचित कंकाल संरचना है।

Azooxanthelate प्रवाल मूंगों का एक समूह है जिसमें जूजैंथिली (zooxanthelate) शैवाल नहीं होता है और ये सूर्य से नहीं बल्कि प्लवक (plankton) के विभिन्न प्रकारों से पोषण प्राप्त करते हैं।

कोरल के ये समूह गहरे समुद्र में प्राप्त हैं, जिनमें से अधिकांश प्रजातियां 200 मीटर से 1000 मीटर गहराई के बीच प्राप्त होइ हैं। वैसे इन्हें उथले तटीय जल में देखी गयी हैं।

इस बीच, जूजैंथिली कोरल उथले पानी तक ही सीमित हैं

क्या होता है प्रवाल (Coral Reef)?

प्रवाल (Coral) अकशेरुकी जंतुओं ( invertebrate animals) के विविध समूह हैं। कोरल पॉलीप्स (polyps) छोटे, मुलायम शरीर वाले जीव होते हैं जो जेलीफ़िश और समुद्री एनीमोन से संबंधित होते हैं। वे रंगीन और आकर्षक जानवरों के एक बड़े समूह से संबंधित हैं जिन्हें निडारिया (Cnidaria) कहा जाता है।

प्रवाल वास्तव में प्राचीन एवं विशिष्ट साझेदारी है जिसे सिम्बायोसिस कहा जाता है जो महासागरों में जानवर एवं पादप, दोनों जीवन रूपों को प्रभावित करता है। आज हम जिसे प्रवाल कहते हैं वे वास्तव में ‘पॉलीप्स’ (polyps) नामक सैकड़ों एवं हजारों जंतुओं से निर्मित है।

कोमल शरीर वाला प्रत्येक पॉलीप चूना पत्थर (कैल्सियम कार्बोनेट) को छिपाये रहता है जो चट्टानों से या फिर किसी अन्य पॉलीप्स की मृत हड्डियों जुड़ा होता है।

प्रवाल बिना डंठल का होता है जिसका मतलब होता है कि ये हमेशा महासागरीय फ्लोर से जोड़े रखते हैं। इसका यह भी मतलब होता है कि ये पौधों की तरह जड़ धारण करते हैं। इसके बावजूद इन्हें पौधा नहीं माना जाता बल्कि जीव माना जाता है क्योंकि ये पौधों की तरह अपना भोजन खुद नहीं बनाते।

प्रवाल भित्तियाँ

प्रवाल भित्तियाँ दुनिया के महासागरों के सबसे अधिक उत्पादक, सतत और प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं, विशेष रूप से उथले तटीय जल में।

भारत में कठोर मूंगों।प्रवाल की लगभग 570 प्रजातियाँ पाई जाती हैं और उनमें से लगभग 90% अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास के जल में पाई जाती हैं।

मूंगों का प्राचीन और सबसे पुराना पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी की सतह के 1% से भी कम हिस्से को साझा करता है लेकिन वे लगभग 25% समुद्री जीवन के लिए आश्रय प्रदान करते हैं।

ESSO-INCOIS के अनुसार, कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप द्वीप समूह और मालवन के क्षेत्रों में प्रवाल भित्तियाँ मौजूद हैं।

भारत में, उन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 की अनुसूची I के तहत बाघ या हाथी की तरह ही इन्हें संरक्षित किया गया है।

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