बिहार में जाति आधारित जनगणना और इतिहास
बिहार में बहुत जल्द जाति आधारित जनगणना (caste-based census ) शुरू करने का फैसला लिया गया है। इस मेगा अभ्यास में शामिल होने वालों को उचित प्रशिक्षण दिया जाएगा और रिपोर्ट प्रकाशित की जाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में 1 जून को हुई बैठक में विधानमंडल में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी दलों ने भाग लिया। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि इस अभ्यास को जाति आधार गणना (Jaati Aadharit Ganana) कहा जाएगा। जाहिर है यह नाम संवैधानिक पेचीदगियों से बचने के लिए दिया गया है।
- इससे पहले, बिहार विधानमंडल ने जाति-आधारित जनगणना के लिए दो बार प्रस्ताव पारित किया था और 11 सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने भी इस अभ्यास की मांग के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। हालाँकि, केंद्र सरकार ने उनकी मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह एक “विभाजनकारी कवायद” होगी, लेकिन कहा कि “राज्य अपने दम पर जाति की जनगणना कर सकते हैं”।
क्या है जाति जनगणना ?
- जाति जनगणना का अर्थ है दशकीय जनगणना अभ्यास में भारत की जनसंख्या के जाति-वार सारणीकरण को शामिल करना।
जाति जनगणना का इतिहास
- भारत में पहली जनगणना 1872 में शुरू हुई और आवधिक गणना 1881 में ब्रिटिश शासन के तहत हुई। तब से, जाति के आंकड़े हमेशा शामिल किए गए, हालांकि केवल 1931 तक।
- स्वतंत्र भारत में 1951 से 2011 तक की प्रत्येक जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं, लेकिन अन्य जातियों पर नहीं।
- इससे पहले, 1931 तक की हर जनगणना में जाति के आंकड़े होते थे। साल 1931 में आखिरी बार जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे। ये एकीकृत बिहार-ओडिशा के समय हुई थी, तब राज्य में 23 से ज्यादा जातियां थीं।
- वर्ष 2011 में एक अलग सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (Socio-Economic Caste Census: SECC) आयोजित की गई थी।
- राष्ट्रीय स्तर पर, जहाँ 1931 की अंतिम जाति जनगणना के अनुसार जातियों की कुल संख्या 4,147 थी, SECC-2011 में 46 लाख विभिन्न जातियों की उपस्थिति दिखाई गई।
- चूंकि कुल संख्या “इस हद तक घातीय रूप से अधिक” नहीं हो सकती थी, इसलिए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि यह पूरा डेटा सेट त्रुटिपूर्ण है और जनगणना अविश्वसनीय है, इसे आरक्षण और नीति के प्रयोजनों के लिए अनुपयोगी बना रहा है।
- इन कारणों से,सरकार ने SECC-2011 के जाति के आंकड़ों को भी सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया। कहा तो जाता है कि वर्ष 2011 की जनगणना में करीब 34 करोड़ लोगों के बारे में मिली जानकारी ही गलत है।
- द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल कमीशन) ने पिछड़ी जातियों की आबादी 52 प्रतिशत बताते हुए उसके लिए आरक्षण की मांग रखी थी।
- कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों ने “सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण” के नाम पर इसी तरह की गणना की है।
- वर्ष 2015 में कर्नाटक सरकार ने अपने खर्च पर जातीय जनगणना कराई। लेकिन संवैधानिक वजहों से इसका नाम सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रखा गया। इसके लिए कर्नाटक सरकार ने अपने खजाने से 162 करोड़ रुपए खर्च किए। लेकिन इसे भी अब तक जारी नहीं किया गया है।
संविधान और जनगणना
- जनसंख्या जनगणना संघ सूची का विषय है (अनुच्छेद 246) और इसे संविधान की सातवीं अनुसूची के 69वें नंबर पर सूचीबद्ध किया गया है।
- जनगणना अधिनियम 1948 स्वतंत्र भारत में जनगणना के संचालन के लिए कानूनी आधार बनाता है। राज्य स्वतंत्र रूप से जनगणना का आदेश नहीं दे सकते।
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