बिहार के मुख्यमंत्री ने भारत के पहले अनाज-आधारित इथेनॉल संयंत्र का उद्घाटन किया

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बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने 30 अप्रैल को पूर्णिया जिले में देश के पहले ग्रीनफील्ड अनाज आधारित इथेनॉल संयंत्र (grain-based ethanol plant) का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि इथेनॉल उत्पादन से पेट्रोल की लागत कम करने और राज्य में नए रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी।

  • ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा स्थापित 105 करोड़ रुपये का प्लांट केंद्र सरकार द्वारा बिहार सरकार की इथेनॉल उत्पादन और प्रचार नीति -2021 को मंजूरी देने के बाद से विकसित पहला संयंत्र है।
  • जीरो वेस्ट डिस्चार्ज का उपयोग कर नवीनतम तकनीक से स्थापित एथनॉल प्लांट 15 एकड़ में बनाया गया है।
  • यह प्रतिदिन 130 टन चावल की भूसी और 150 टन मक्का या चावल किसानों से खरीदती है।
  • यह संयंत्र पूर्णिया शहर से लगभग 12 किमी दूर गणेशपुर परोरा में स्थित है। यह क्षेत्र मक्के की खेती के केंद्र के रूप में उभरा है, जिसका उपयोग संयंत्र में इथेनॉल बनाने के लिए किया जा सकता है।
  • बिहार का सीमांचल क्षेत्र, जिसमें पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज जिले शामिल हैं, बिहार में उत्पादित कुल मक्का का 80% हिस्सा का योगदान करते हैं ।

इथेनॉल उत्पादन

  • कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण के साथ आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने, कच्चे तेल के आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा बचाने और वायु प्रदूषण घटाने के लिए, सरकार ने पेट्रोल के साथ ईंधन की गुणवत्ता इथेनॉल को 2022 तक 10% और 2025 तक 20% सम्मिश्रण (ब्लेंडिंग) लक्ष्य तय किया है।
  • केंद्र सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए बी हैवी शीरा, गन्ने का रस, चीनी और चीनी की चाशनी का उपयोग करने की अनुमति सहित कई कदम उठाए हैं।
  • ईंधन ग्रेड इथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए, सरकार भारतीय खाद्य निगम के पास उपलब्ध मक्के और चावल से इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए डिस्टिलरीज को भी प्रोत्साहित कर रही है।
  • गन्ने और इथेनॉल का मुख्य रूप से तीन राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में उत्पादन होता है। इन तीनों राज्यों से सुदूर राज्यों में इथेनॉल की ढुलाई पर भारी खर्च आता है।
  • देश भर में अनाज आधारित नई डिस्टलरीज लगने से इथेनॉल का विकेंद्रीकृत उत्पादन शुरू होगा और ढुलाई के खर्च में भारी बचत होगी और इस प्रकार से सम्मिश्रण लक्ष्य पाने में देरी रोकी जा सकेगी और देश भर के किसानों को लाभ मिलेगा।
  • इथेनॉल के उत्पादन से न केवल अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल बनाने में इस्तेमाल करने की सुविधा होगी, बल्कि यह किसानों को भी अपनी फसलों में विविधता लाने, खास तौर पर मक्के की खेती के लिए प्रोत्साहित करेगा, जिसमें कम पानी की जरूरत होती है।
  • यह विभिन्न तरह के कच्चे माल से इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देगा, जिससे पेट्रोल के साथ इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्यों को पाने में सुविधा होगी और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटेगी, जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को संभव बनाएगा। 

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