प्रधानमंत्री ने भारत से विलुप्त हो चुके जंगली चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 17 सितंबर को भारत से विलुप्त हो चुके जंगली चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में छोड़ा। प्रधानमंत्री ने कुनो नेशनल पार्क में दो रिलीज पॉइंट पर इन चीतों को छोड़ा।
नामीबिया से लाए गए इन चीतों को ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत भारत में पुनर्वास किया जा रहा है। इन आठ चीतों में से पांच मादा और तीन नर हैं। यह बड़े मांसाहारी जंगली जानवरों के एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप स्थानांतरण की दुनिया की पहली परियोजना (world’s first inter-continental large wild carnivore translocation project) है।
चीता को 1952 में भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। जिन चीतों को छोड़ा गया है, वे नामीबिया के हैं और उन्हें इस साल की शुरुआत में हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के तहत भारत लाया गया है।
लाभ
ये चीता भारत में खुले जंगल और चरागाहों के इकोसिस्टम को बहाल करने में मदद करेंगे। इससे जैव विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी और यह जल सुरक्षा, कार्बन पृथक्करण और मृदा की नमी के संरक्षण जैसी इकोसिस्टम से जुड़ी सेवाओं को बढ़ाने में मदद करेगा, जिससे बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।
यह प्रयास पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता के अनुरूप है और यह पर्यावरण के अनुकूल विकास एवं इकोटूरिज्म की गतिविधियों के जरिए स्थानीय समुदाय की आजीविका के अवसरों में वृद्धि करेगा।
चीता पुनर्वास: एक परिचय
प्रोजेक्ट चीता को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनवरी 2020 में भारत में प्रजातियों के पुनर्वास के लिए एक पायलट कार्यक्रम के रूप में अनुमोदित किया गया था।
चीता के पुनर्वास की अवधारणा को पहली बार 2009 में भारतीय संरक्षणवादियों द्वारा चीता संरक्षण कोष (Cheetah Conservation Fund: CCF) के साथ रखा गया था, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसका मुख्यालय नामीबिया में है, जो जंगली बड़ी बिल्ली को बचाने और पुनर्वास की दिशा में काम करता है।
जुलाई 2020 में, भारत और नामीबिया गणराज्य ने एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए, जिसमें नामीबिया सरकार ने कार्यक्रम शुरू करने के लिए आठ चीता दान करने पर सहमति व्यक्त की।
यह पहली बार है कि एक जंगली दक्षिणी अफ्रीकी चीता भारत में या दुनिया में कहीं भी लाया जाएगा।
चीता परियोजना का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वस्थ मेटा-आबादी/meta-populations (एक बड़े क्षेत्र में प्रजाति का अलग-अलग आश्रय) विकसित करना है जो चीता को एक शीर्ष शिकारी के रूप में अपनी कार्यात्मक भूमिका को निष्पादित करने की अनुमति देता है।
चीता एक फ्लैगशिप ग्रासलैंड प्रजाति/कीस्टोन प्रजाति है; जिसका संरक्षण अन्य चरागाह प्रजातियों को परभक्षी खाद्य श्रृंखला में संरक्षित करने में भी मदद करता है।
कूनो पालपुर में स्थानीय समुदायों के लिए जन जागरूकता अभियानों को भी औपचारिक रूप दिया गया है, जिन्हें चीता मित्र कहा जाएगा, जिसका एक स्थानीय शुभंकर भी होगा – “चिंटू चीता” (Chintu Cheetah)।
प्रमुख चुनौतियां: कूनो राष्ट्रीय उद्यान के शेरों और तेंदुओं का पर्यावास होने के कारण, मौजूदा प्रजातियों के साथ पुन: छोड़े गए चीतों के सह-अस्तित्व पर चिंता जताई गई है। वन्यजीव विशेषज्ञों ने बताया है कि संघर्ष के कारण उन्मूलन की संभावना अधिक है। अपने छोटे आकार और अपने गृह देश और भारत के बीच जलवायु और पारिस्थितिक अंतर के कारण पुन: पेश की गई चिताओं को भी बढ़ी हुई वल्नेरेबिलिटी का सामना करना पड़ सकता है।