नैन्सी पेलोसी की ऐतिहासिक ताइवान दौरा और “वन चाइना” नीति
संयुक्त राज्य अमेरिका की हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी 2 अगस्त को ताइवान के ऐतिहासिक दौरे (Nancy Pelosi’s Taiwan visit) पर पहुंची और वहां की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से मुलाकात की, जिसकी चीन ने कड़ी निंदा की है। सुश्री पेलोसी विगत 25 वर्षों में ताइवान की यात्रा करने वाली सबसे वरिष्ठ अमेरिकी राजनेता हैं। सुश्री पेलोसी ने कहा कि उनका प्रतिनिधिमंडल यह स्पष्ट करने आया था कि अमेरिका ताइवान को “अकेला” नहीं छोड़ेगा। इससे पहले चीन ने चेतावनी देते हुए कहा था कि सुश्री पेलोसी की ताइवान यात्रा के लिए अमेरिका को “कीमत चुकाना” पड़ेगा।
अमेरिका-ताइवान संबंध औ वन चाइना नीति
ताइवान स्व-शासित है, लेकिन चीन इसे अपना ही एक अलग प्रांत के रूप में देखता है जो अंततः इसके साथ एकजुट हो जाएगा।
अमेरिका “वन चाइना” नीति का पालन करता है – जो दोनों देशों के राजनयिक संबंधों की आधारशिला है। “वन चाइना” नीति केवल एक चीनी सरकार को मान्यता देती है। इसलिए उसका ताइवान के साथ औपचारिक संबंध नहीं है बल्कि चीन के साथ है ।
लेकिन यह ताइवान द्वीप के साथ “मजबूत अनौपचारिक” संबंध भी बनाए रखता है। इसमें ताइवान को अपनी रक्षा के लिए हथियार बेचना शामिल है।
पेलोसी की यात्रा को बीजिंग ताइवान के समर्थन के एक और संकेत के रूप में देखता है।
चीन दिखावा करता है कि ताइवान वर्तमान में उसके क्षेत्र का हिस्सा है, भले ही ताइवान अपने स्वयं के कर एकत्र करता है, अपनी सरकार में वोट देता है, अपने स्वयं के पासपोर्ट जारी करता है और इसकी अपनी सेना है।
अमेरिका यह दिखावा करता है कि वह ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में नहीं मान रहा है, भले ही वह उसे उच्च तकनीक वाले हथियार बेचता है और, कभी-कभी, उच्च पदस्थ राजनेता आधिकारिक यात्रा पर जाते हैं।
ताइवान के साथ भारत के संबंध
भारत के ताइवान के साथ अभी औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, क्योंकि वह भी एक-चीन नीति का पालन करता है।
हालाँकि, दिसंबर 2010 में तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के दौरान, भारत ने संयुक्त विज्ञप्ति में एक-चीन नीति के समर्थन का उल्लेख नहीं किया था।
वर्ष 2014 में, जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, तो उन्होंने ताइवान के राजदूत चुंग-क्वांग टीएन को अपने शपथ ग्रहण में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष लोबसांग सांगे के साथ आमंत्रित किया था।
एक-चीन नीति का पालन करते हुए, राजनयिक कार्यों के लिए भारत का ताइवान की राजधानी ताइपे में एक कार्यालय है। इसके अलावा भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) का नेतृत्व एक वरिष्ठ राजनयिक करता है।
ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC) है। दोनों केंद्रों की स्थापना 1995 में हुई थी।
इन दोनों देशों के बीच संबंध वाणिज्य, संस्कृति और शिक्षा पर केंद्रित हैं।
हाल के वर्षों में, चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध के बाद भारत ने ताइवान के साथ अपने संबंधों को निभाने की कोशिश की है। वर्ष 2020 में, गलवान संघर्ष के बाद, भारत ने विदेश मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव (अमेरिका) को राजनयिक गौरांगलाल दास को ताइपे में अपना दूत बनने के लिए चुना।
20 मई 2020 को, भारतीय जनता पार्टी ने अपने दो सांसदों मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वां को ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में वर्चुअल मोड के माध्यम से भाग लेने के लिए कहा था।
अगस्त 2020 में, ताइवान के पूर्व राष्ट्रपति ली तेंग-हुई के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, भारत ने उन्हें “मिस्टर डेमोक्रेसी” के रूप में वर्णित किया था।