निधियों की सीमांत लागत-आधारित उधार दर (MCLR)
भारत के सबसे बड़े कर्जदाता, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और कुछ अन्य बड़े बैंकों ने अपनी बेंचमार्क उधार दर – निधियों की सीमांत लागत-आधारित उधार दर (marginal cost of funds-based lending rate: MCLR) में वृद्धि करना शुरू कर दिया है।
- इस कदम से ग्राहकों को अपने हाउसिंग, ऑटो और अन्य रिटेल लोन पर अधिक भुगतान करना होगा। SBI ने 15 अप्रैल से सभी अवधियों (100 बीपीएस = 1 प्रतिशत अंक) के लिए अपने MCLR में 10 आधार अंकों की वृद्धि की।
- तीन साल से अधिक समय में एसबीआई द्वारा ऋण दर में वृद्धि का यह पहला उदाहरण है।
निधियों की सीमांत लागत-आधारित उधार दर (MCLR)
- MCLR एक बेंचमार्क ब्याज दर है। यह वह न्यूनतम ब्याज दर है जिस पर बैंकों को उधार देने की अनुमति है। अर्थात इससे कम ब्याज दर फिर बैंकों द्वारा कर्ज देने की मनाही है।
- MCLR को 1 अप्रैल 2016 से RBI द्वारा स्थापित किया गया था।
- MCLR लाने की पीछे मुख्य उद्देश्य ब्याज दरों में पक्षपात या भेदभाव को रोकना था।
- MCLR अक्टूबर 2019 से नए कॉर्पोरेट ऋणों और पहले लिए गए फ्लोटिंग रेट ऋणों पर लागू होता है।
- अक्टूबर 2019 से RBI ने बाहरी बेंचमार्क लिंक्ड लेंडिंग रेट (EBLR) सिस्टम पर स्विच किया, जहाँ उधार दर बेंचमार्क रेपो या ट्रेजरी बिल दरों जैसी दरें से जुड़ी हुई है।
- ज्यादातर कर्ज एक साल के MCLR से जुड़े होते हैं।
- दिसंबर 2021 तक बैंकों द्वारा बांटे गए कर्जों में 53.1% हिस्सा MCLR से जुड़े था। एसबीआई के लिए, एमसीएलआर से जुड़े ऋणों की हिस्सेदारी सिर्फ 40% से अधिक होने का अनुमान है।
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