धान की पराली जलाने के प्रबंधन के लिए राज्यों की तैयारियों की उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने धान की पराली जलाने के प्रबंधन के लिए राज्यों की तैयारियों की 21 सितम्बर को उच्चस्तरीय बैठक में समीक्षा की। बैठक में श्री तोमर ने कहा कि इस मामले में राज्यों की सफलता तभी है, जब पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं और यहीं आदर्श स्थिति होगी।
पराली जलाने से पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है, किसानों के खेतों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे अंततः किसान, राज्य व देश को भी नुकसान होता है ।
फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण संवर्धन योजना
वर्ष 2022-23 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 700 करोड़ रुपये परिव्यय के साथ कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ‘फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण संवर्धन’ (Promotion of Agricultural Mechanization for In-Situ Management of Crop Residue) नामक केंद्रीय क्षेत्र की योजना का कार्यान्वयन जारी रखे हुए हैं।
अब तक 240 करोड़, 191.53 करोड़, 154.29 करोड़ और 14.18 करोड़ रुपये पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आईसीएआर को पहली किस्त के रूप में जारी किए जा चुके हैं।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलने के कारण दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ने वाले वायु प्रदूषण को कम करने और फसल के अवशेषों का उसी स्थान पर प्रबंधन करने के लिए सब्सिडी के साथ आवश्यक मशीनरी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह योजना 2018-19 में शुरू की गई थी।
इस योजना के तहत फसल अवशेष प्रबंधन वाली मशीनों की खरीद के लिए व्यक्तिगत रूप से किसानों को मूल्य के 50 फीसदी के दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और परियोजना लागत का 80 फीसदी किसानों, पीएफओ और पंचायतों की सहकारी समितियों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना के लिए दिया जाता है।
राज्यों और आईसीएआर को किसानों और अन्य हितधारकों को जागरूक करने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (आईसी) गतिविधियां करने के लिए धनराशि उपलब्ध कराई जाती है।
यह योजना सुपर स्ट्रॉ प्रबंधन प्रणाली, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, मल्चर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, हाइड्रॉलिकली रिवर्सिबल मोल्ड बोर्ड हल, क्रॉप रीपर और रीपर बाइंडर जैसी मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है, जिससे फसल अवशेषों का उसी जगह पर प्रबंधन किया जा सके।
इसके साथ ही पराली की गांठों को इकट्ठा करने के लिए बेलर्स एवं रेक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है। योजना के तहत ‘स्मार्ट सीडर’ मशीन को भी शामिल किया गया है।
पूसा डीकंपोजर (Pusa Decomposer)
चालू वित्त वर्ष के दौरान, इन राज्यों में बड़े पैमाने पर बायो-डीकंपोजर (जैव-अपघटक) तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के प्रावधान भी किए गए हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विकसित पूसा डीकंपोजर (Pusa Decomposer) को धान की पुआल को उसी स्थान पर तेजी से गलाने में प्रभावी पाया गया है।
पूसा डीकंपोजर, कवक प्रजातियों का एक माइक्रोबियल समूह (तरल और कैप्सूल दोनों रूपों में) कैप्सूल रूप में भी उपलब्ध है।
साल 2021 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में लगभग 5.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में डीकंपोजर का इस्तेमाल किया गया, जो लगभग 35 लाख टन पराली का प्रबंधन करने के बराबर है।
सैटलाइट इमेजिंग और निगरानी के जरिए पाया गया कि 92 प्रतिशत क्षेत्र में डीकंपोजर के जरिए पराली का निपटारा किया गया जबकि केवल 8 फीसदी हिस्से में पराली जलाई गई।