देवसहायम पिल्लई को दी गयी संत की उपाधि

Image credit: Vatican

18वीं शताब्दी में ईसाई धर्म अपनाने वाले देवसहायम पिल्लई (Devasahayam Pillai) 15 मई को वेटिकन में एक समारोह के दौरान पोप फ्रांसिस द्वारा संत घोषित किए जाने वाले पहले आम भारतीय बने। वर्ष 2004 में तमिलनाडु बिशप्स काउंसिल कोट्टर सूबा और भारत के कैथोलिक बिशप्स के सम्मेलन के अनुरोध पर, वेटिकन द्वारा बीटिफिकेशन की प्रक्रिया के लिए देवसाहयम के नाम की सिफारिश की गई थी।

  • वेटिकन के सेंट पीटर्स बेसिलिका में संत पोप फ्राँसिस ने देवसाहयम को संत की उपाधि दी। देवसहायम द्वारा किये गए कथित एक चमत्कार को 2014 में पोप फ्रांसिस द्वारा मान्यता दी गई थी, जिससे 2022 में उनके संत बनने का रास्ता साफ हो गया था।
  • देवसहायम का जन्म 23 अप्रैल, 1712 को नीलकांत पिल्लई के रूप में कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था, जो कि उस समय तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य हिस्सा था।
  • वह त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा के दरबार में एक अधिकारी थे, जब उन्हें 1745 में एक डच नौसेना कमांडर डी लैनॉय द्वारा कैथोलिक धर्म में शामिल किया गया था।
  • उन्होंने मलयालम में “लाजर”, या “देवसहायम” नाम लिया, जिसका अनुवाद “ईश्वर ही मेरी मदद” है। 14 जनवरी, 1752 को अरलवाइमोझी जंगल में उनकी आस्था को बनाए रखने के लिए गोली मार दी गयी थी जिसके बाद शहादत का सम्मान मिला।
  • उनके जीवन और मृत्यु से जुड़े स्थल तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में कोट्टार सूबा में हैं।
  • देवसहायम को 2 दिसंबर, 2012 को कोट्टर में धन्य घोषित किया गया था। देवसहायम के एक चित्र को धन्य लाजर भी कहा जाता है। इसका अनावरण गिरजाघर में किया जाएगा।

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