चीन में डुगोंग कार्यात्मक रूप से विलुप्त घोषित

शोधकर्ताओं ने चीन में मैनेटे (manatee) के निकटस्थ संबंधी डुगोंग (dugong) स्तनपायी को कार्यात्मक रूप से विलुप्त (functionally extinct) घोषित कर दिया किया है। एक “कार्यात्मक रूप से विलुप्त” (functionally extinct) जीव वह है जिसमें कुछ संख्या अभी भी जीवित हो सकती हैं लेकिन कभी भी इनकी पुरानी संख्या बहाल नहीं हो सकती यानी ये रिकवर नहीं हो सकते। कुछ जीव “जंगल में विलुप्त” (extinct in the wild) हैं, जिसका अर्थ है कि वे अब उन क्षेत्रों में नहीं पाए जा सकते हैं जहां वे एक बार रहा करते थे।

विलुप्ति की वजह

चीन में तटीय समुदायों के सर्वेक्षण में केवल तीन लोगों ने पिछले पांच वर्षों में डुगोंग को देखने की सूचना दी

डुगोंग को समुद्र के सबसे कोमल विशालकाय स्तनपायी के रूप में जाना जाता है, और धीमे और सुस्त व्यवहार की वजह से मछुआरों द्वारा पकड़ लिए जाते हैं या शिपिंग दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। यह अभी भी दुनिया में कई और जगह मौजूद हैं लेकिन इसी तरह के खतरों का सामना कर रहे हैं।

ZSL और चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने उन सभी ऐतिहासिक आंकड़ों की समीक्षा की, जहां पहले चीन में डुगोंग पाए गए थे। उन्होंने पाया कि 2000 के बाद से वैज्ञानिकों ने इसके होने की पुष्टि नहीं की है। डुगोंग समुद्र का एक अनूठा जीव है।

चीन में तट के करीब इसके पर्यावास स्थान ने इसे 20 वीं शताब्दी में शिकारियों के लिए असुरक्षित बना दिया, जिन्होंने इसकी त्वचा, हड्डियों और मांस के लिए इसका शिकार करते रहे।

चीन में इसकी विलुप्ति, ऑस्ट्रेलिया, भारत और पूर्वी अफ्रीका सहित अन्य क्षेत्रों के लिए एक चेतावनी है जहां यह अनूठा जानवर इसी तरह के खतरों का सामना कर रहा है।

यह प्रजाति दुनिया के 37 अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है – विशेष रूप से भारतीय और पश्चिमी प्रशांत महासागरों के उथले तटीय जल में। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की खतरे की लाल सूची में इसे “वल्नरेबल” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

डुगोंग-एकमात्र शाकाहारी समुद्री स्तनधारी

उल्लेखनीय है कि डुगोंग विश्व का एकमात्र शाकाहारी समुद्री स्तनधारी है और यह विलुप्ति के कगार पर है। इसे समुद्री गाय (सी काउ) भी कहा जाता है। ये स्तनधारी हैं, जिसका मतलब है ये बच्चों को जन्म दे सकती हैं और दूध भी दे सकती हैं और बच्चों का पालन कर सकती हैं।

इनका मुख्य आहार समुद्री घास है और एक दिन में ये 40 किलोग्राम समुद्री घास खा जाती हैं।

समुद्री कछुआ, समुद्री घोड़े, सी ककम्बर की तरह डुगोंग भी भारत के वन्यजीव संरक्षण एक्ट 1972 की अनुसूची-1 में शामिल हैं अर्थात भारत में इन्हें सर्वोच्च सुरक्षा प्राप्त है।

भारत ने वर्ष 2008 में डुगोंग की सुरक्षा के लिए वन्यजीवों के प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (CMS) पर एक गैर-बाध्यकारी समझौता पर हस्ताक्षर किया था।

अपने निकट सम्बन्धी मैनेटेस के विपरीत, डुगोंग कभी भी मीठे पानी में प्रवेश नहीं करता है और इसलिए यह एकमात्र विशेष रूप से समुद्री स्तनपायी है जो शाकाहारी है।

डुगोंग विलुप्त होने के कगार पर हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इनकी आबादी 100 से भी कम है। मन्नार की खाड़ी में बहुत कम बचे हैं। कच्छ की खाड़ी में बहुत कम छिटपुट रिकॉर्ड हैं। वे लक्षद्वीप में मौजूद थे लेकिन अब स्थानीय रूप से विलुप्त हो चुके हैं।

तमिलनाडु राज्य सरकार ने भारत और श्रीलंका के बीच मन्नार की खाड़ी, में डुगोंग संरक्षण रिजर्व (dugong conservation reserve) स्थापित करने की घोषणा की है।

किसी क्षेत्र को ‘संरक्षित’ (प्रोटेक्टेड एरिया) घोषित करने का मतलब है कि वहां किसी मानवीय गतिविधि नहीं होगी। लेकिन समुद्री पारितंत्र के मामले में स्थिति अलग हैं, क्योंकि यह एक साझा संसाधन है और तटीय समुदाय अपनी आजीविका के लिए इस पर अत्यधिक निर्भर हैं।

समुद्री क्षेत्र को संरक्षित (प्रोटेक्टेड एरिया) नामित करने का शाब्दिक अर्थ है ऐसे लोगों को संसाधनों से वंचित करना।

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