गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध

भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात को “निषिद्ध” श्रेणी (prohibited) में रखकर उसकी निर्यात नीति में संशोधन किया है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि सरकार ने “तत्काल प्रभाव” से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। मंत्रालय के 13 मई के एक आदेश में उच्च प्रोटीन वाले ड्यूरम गेहूं सहित सभी प्रकार के स्टेपल को ‘मुक्त’ (free) श्रेणी से ‘निषिद्ध’ श्रेणी में रखा गया है।

  • हालांकि, सरकार ने अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर उसके द्वारा दी गई अनुमति के आधार पर निर्यात की अनुमति दी है। साथ ही सरकार ने यह भी कहा है कि जहां ” अधिसूचना जारी होने की तारीख (13 मई) को या उससे पहले निर्यात के लिए लेटर ऑफ़ क्रेडिट जारी किया गया है” उस दशा में भी निर्यात किया जायेगा।
  • इस अधिसूचना का मतलब यह है कि अब गेहूं निर्यात केवल सरकारी अनुमति से होगी और निजी क्षेत्र निर्यात नहीं कर सकेंगे।
  • वाणिज्य सचिव सुब्रह्मण्यम के अनुसार भारत की खाद्य सुरक्षा के अलावा, सरकार पड़ोसी देशों और गरीब देशों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • सरकार के अनुसार, नियंत्रण आदेश तीन मुख्य उद्देश्यों की पूर्ति करता है: यह देश के लिए खाद्य सुरक्षा को बनाए रखता है, यह दूसरों की मदद करता है जो संकट में हैं, और एक आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की विश्वसनीयता बनाए रखता है।
  • सरकार द्वारा अचानक निर्यात प्रतिबंध की पीछे मुख्य वजह 12 मई को जारी वार्षिक उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति रही है जो अप्रैल में आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई और रिटेल खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 8.38 प्रतिशत हो गई।
  • बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति के अलावा यह निर्णय स्पष्ट रूप से सरकारी एजेंसियों द्वारा गेहूं की कम खरीद की वजह से भी लिया गया है। 2021-22 में रिकॉर्ड 43.3 मिलियन टन के मुकाबले वर्तमान विपणन सत्र में अब तक केवल 18 मिलियन टन (mt) खरीदा गया है।
  • 31 मार्च, 2022 को समाप्त वित्त वर्ष में भारत का गेहूं निर्यात 7.22 मिलियन टन (2.05 बिलियन डॉलर मूल्य ) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया।
  • सुब्रह्मण्यम के अनुसार, कुल निर्यात का लगभग आधा हिस्सा बांग्लादेश को भेजा गया। गेहूं के उत्पादन में कमी की वजह मार्च के मध्य से तापमान में अचानक वृद्धि है जिससे किसानों को उपज का नुकसान हुआ है। मार्च के मध्य में तापमान 35 डिग्री और महीने के अंत तक 40 डिग्री को पार करने के कारण अनाज समय से पहले पक गया और सिकुड़ गया।

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