केंद्र सरकार ने राज्यों के ‘ऑफ-बजट उधार’ के मानदंडों में छूट दी है
वित्त मंत्रालय ने राज्यों के ऑफ-बजट उधारियों (off-budget loans) को समायोजित करने के मानदंडों में ढील दी है। 2020-21 तक राज्यों द्वारा लिए गए ऑफ-बजट उधार को समायोजित नहीं किया जा सकता है और केवल 2021-22 में लिए गए ऑफ-बजट उधारियों को अगले चार वर्षों में (वर्ष 2026 तक) समायोजित किया जा सकता है।
क्या है ऑफ-बजट उधार (off-budget loans) ?
ऑफ-बजट उधार (off-budget loans) राज्य सरकार की इकाइयों, स्पेशल परपज व्हीकल, आदि द्वारा लिए गए ऋणों को कहते हैं।
ऐसे ऋणों के मूलधन और ब्याज राज्य सरकार को अपने बजट से चुकाना होता है, न कि उधार लेने वाली इकाई में कैश फ्लो या इकाई की राजस्व प्राप्ति से।
इस तरह की उधारी राज्यों के लिए तय की गई वार्षिक नेट उधार सीमा (net borrowing ceiling f) को पार कर जाती है। चूंकि ऐसे ऋण चुकाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, इसलिए यह उनके राजस्व और राजकोषीय घाटे पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
नियम के अनुसार, राज्य सरकारों को किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित सीमा से अधिक नए उधार लेने के लिए केंद्र की मंजूरी लेनी होती है।
संविधान के अनुच्छेद 293 (3) के तहत, राज्य सरकारों को नए उधार लेने के लिए केंद्र की अनुमति लेने की आवश्यकता होती है, यदि वे भारत सरकार के ऋणी हैं। लेकिन राज्यों को अपनी संस्थाओं द्वारा जारी किए गए ऋणों और अग्रिमों और बांडों की गारंटी के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। साथ ही, गारंटी की अधिकतम सीमा स्वयं निर्धारित होती है और हर राज्य में अलग-अलग होती है।
इन सभी के कारण ऑफ-बजट उधार पर अधिक निर्भरता बढ़ी है।
प्रत्येक वर्ष की शुरुआत में, केंद्र सरकार राज्य सरकारों को बताती है कि उन्हें कितना उधार लेने की अनुमति है (उनकी शुद्ध उधार सीमा)।
केंद्र ने राज्यों की शुद्ध उधार सीमा 8.57 लाख करोड़ रुपये या राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) का 3.5 प्रतिशत तय की है। यदि राज्य सरकार बिजली क्षेत्र में सुधार करती हैं तो उन्हें GSDP के 0.50 प्रतिशत की अतिरिक्त उधारी की अनुमति दी जाती है।
ऑफ-बजट उधार बढ़ने के कारण
पिछले दो वर्षों में, कई राज्यों ने अपने पूंजीगत व्यय के लिए फण्ड देने और Covid19 की वजह से आयी आर्थिक मंदी के प्रभाव को कम करने के लिए ऑफ-बजट उधार का सहारा लिया है।
बजट से इतर उधारी बढ़ने के दो कारण हैं। एक, कोविड -19 महामारी की वजह से मंदी और राजस्व व्यय में वृद्धि की समस्या। इससे राज्यों का राजकोषीय घाटा GSDP के 4 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जो पिछले दशक के अधिकांश समय में देखे गए 2-3 प्रतिशत के ऐतिहासिक स्तर से काफी ऊपर है। इसने राज्यों के पास अपनी संस्थाओं को सीधे फण्ड देने की क्षमता कम कर दिया है। दो, भले ही राज्य अधिक उधार लेकर ऐसा करना चाहते हों, लेकिन वे केंद्र सरकार की स्पष्ट स्वीकृति के बिना और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं से परे ऐसा नहीं कर सकते।
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