कई राज्यों के डिस्कॉम्स को बकाया भुगतान न करने पर बिजली कारोबार करने से रोका गया

बिजली मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय ग्रिड ऑपरेटर ‘पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन (POSOCO)’ ने 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश (UT) के डिस्कॉम्स (विद्युत् वितरण कंपनियां) को स्पॉट बाजार में बिजली खरीदने / बेचने से रोक दिया है।

विद्युत् उत्पादन करने वाली कंपनियों (gencos) को अपना बकाया नहीं चुकाने के लिए इन्हें दंड दिया गया है। इनमें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, मणिपुर और मिजोरम के 27 बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) शामिल हैं। डिफॉल्ट करने वाली डिस्कॉम पर कुल मिलाकर 5,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जो तेलंगाना में सबसे ज्यादा 1,380 करोड़ रुपये है।

यह पहली बार है जब ग्रिड ऑपरेटर ने बिजली (विलंब भुगतान अधिभार और संबंधित मामले) नियम, 2022 (Electricity (Late Payment Surcharge and Related Matters) Rules, 2022) को लागू किया है, ताकि डिस्कॉम को वैकल्पिक अल्पकालिक स्रोतों से बिजली खरीदने की अनुमति नहीं दी जा सके।

डिस्कॉम स्पॉट मार्किट (पावर एक्सचेंज) से अतिरिक्त बिजली नहीं खरीद पाएंगे, जबकि gencos के साथ उनके दीर्घकालिक समझौतों से आपूर्ति जारी रहेगी। यदि डिफॉल्ट जारी रहता है तो लंबी अवधि की आपूर्ति को भी काटा जा सकता है।

नियम, जो जून 2022 में अधिसूचित किए गए थे, डिस्कॉम के भुगतान अनुशासन से संबंधित हैं, जो भुगतान की देय तिथि के एक महीने के भीतर बकाया राशि पर देर से भुगतान अधिभार ( late payment surcharge: LPS) का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं।

नियमों के अनुसार, जेनको ने उन राज्यों के डिस्कॉम को कॉन्ट्रैक्ट मात्रा के 25% तक बिजली की आपूर्ति कम कर दी है, जिन्होंने अपने मासिक बकाया का भुगतान नहीं किया है।

नए ‘विलंब भुगतान अधिभार’ (LPS) नियमों के तहत, यदि कोई डिस्कॉम बिल बनने के ढाई महीने बाद तक बकाया राशि का भुगतान नहीं करता है, तो जेनको अनुबंधित बिजली का केवल 75% ही आपूर्ति करेगा। शेष 25% बिजली एक्सचेंजों के माध्यम से जेनको द्वारा बेचा जा सकता है।

यदि बकाया राशि में डिफॉल्ट अगले 30 दिनों तक जारी रहता है, तो जेनको एक्सचेंजों के माध्यम से बिजली खरीद समझौते के तहत डिस्कॉम के साथ अनुबंधित बिजली का 100% बिजली एक्सचेंजों को बेच सकता है, जिससे डिस्कॉम को बिल्कुल भी आपूर्ति नहीं होगी।

संकट की वजह

बिजली मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल, पंजाब और बिहार को सबसे ज्यादा बिजली संकट का सामना करना पड़ा। इसका अधिकांश श्रेय इन राज्य सरकारों द्वारा नागरिकों को मुफ्त बिजली देने के वादे को दिया जा सकता है। इन वादों से बिजली उत्पादन कंपनियों (जेनको) और बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को भुगतान में देरी होती है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) का जेनकोस पर 1 ट्रिलियन रुपये से अधिक का बकाया है। भारत में, औसत ट्रांसमिशन नुकसान (average transmission losses) 20 प्रतिशत से अधिक है। यह विकसित देशों के औसत 5-8 प्रतिशत से बहुत अधिक है। इस सीमा के करीब पहुंचने के लिए, भारत को अपने बुनियादी ढांचे में सुधार करने की जरूरत है।

हालांकि, स्थगित भुगतान और बकाया बढ़ने के साथ, डिस्कॉम और जेनको के पास केवल ऑपरेशन की लागत को कम करने के अलावा सीमित विकल्प हैं। इस प्रकार, बिजली क्षेत्र में उच्च अपव्यय और कम उपलब्धता का एक दुष्चक्र मौजूद है।

हालांकि, हाल के दिनों में, स्मार्ट मीटर, बिजली की खपत को कम करने के तरीके के रूप में उभरे हैं। उत्तर प्रदेश में, इसने डिस्कॉम के बिलों में 36 प्रतिशत की कमी की है। आंध्र प्रदेश में एक पायलट प्रोजेक्ट में खपत में 36 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।

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