उष्णकटिबंध में सभी मौसम के ओजोन छिद्र की खोज

Image credit: Qing-Bin Lu, doi: 10.1063/5.0094629

कनाडा के वाटरलू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर किंग-बिन लू ने उष्णकटिबंध (30 डिग्री N – 30 डिग्री S) के निचले समताप मंडल में एक बड़े और सभी मौसम (all season) के ओजोन छिद्र की खोज (ozone hole in the lower stratosphere over the tropics) की है।

यह नया ओजोन छिद्र 1980 के दशक के बाद से सभी मौसमों में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में निचले समताप मंडल में मौजूद है।

इसका क्षेत्रफल अंटार्कटिका के ऊपर वसंत ऋतु के ओजोन छिद्र का लगभग सात गुना बड़ा है।

चिंता की बात यह है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पृथ्वी का आधा हिस्सा है और दुनिया की लगभग आधी आबादी यहाँ रहती है।

गंभीर वैश्विक चिंता का कारण

उष्ण कटिबंध पर ओजोन छिद्र का अस्तित्व एक गंभीर वैश्विक चिंता का कारण बन सकता है क्योंकि इससे जमीनी स्तर पर अल्ट्रावायलेट विकिरण में वृद्धि हो सकती है और पृथ्वी के सतह क्षेत्र का 50% प्रभावित हो सकता है, जो दुनिया की लगभग 50% आबादी का घर है।

ओजोन परत की कमी से पृथ्वी पर अल्ट्रावायलेट विकिरण बढ़ सकता है, जिससे मनुष्यों में त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद का खतरा बढ़ सकता है, साथ ही मानव प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है, कृषि उत्पादकता कम हो सकती है और संवेदनशील जलीय जीवों और पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इस उष्णकटिबंधीय ओजोन छिद्र (tropical ozone hole) की गहराई अंटार्कटिका के ऊपर वसंत ऋतु के ओजोन छिद्र के समान है, जबकि इसका क्षेत्रफल अंटार्कटिका ओजोन छिद्र के लगभग सात गुना अधिक है।

ओजोन परत

ओजोन परत सूर्य के अधिकांश पराबैंगनी विकिरण (UV) को अवशोषित करती है। 1970 के दशक के मध्य में, वायुमंडलीय अनुसंधान ने सुझाव दिया कि ओजोन परत औद्योगिक रसायनों, मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) के कारण समाप्त हो सकती है।

1985 में अंटार्कटिक ओजोन छिद्र की खोज ने क्लोरोफ्लोरोकार्बन के कारण ओजोन कमी की पुष्टि की। हालांकि इस तरह के रसायनों पर प्रतिबंध ने ओजोन क्षरण को धीमा करने में मदद की है, लेकिन सबूत बताते हैं कि ओजोन की कमी बनी हुई है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल

ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987), ओजोन परत के संरक्षण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जिसमें मानव निर्मित रसायनों के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाता है, इन्हें ओजोन क्षयकारी पदार्थ (ODS) कहा जाता है।

स्ट्रेटोस्फेरिक की ओजोन परत मानव और पर्यावरण को सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों के हानिकारक स्तरों से बचाती है।

भारत 19 जून 1992 को ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक पक्षकार बन गया था और तभी से भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधनों की पुष्टि की है।

किगाली संशोधन

भारत ने ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों से संबंधित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किए गए किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को भी स्वीकृति दी है।

इस संशोधन को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के लिए अक्टूबर, 2016 में रवांडा के किगाली में आयोजित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक के दौरान अंगीकृत किया गया था।

किगाली संशोधन में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (hydrofluorocarbons-HFC) के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम करने से ग्रीनहाउस गैसों के बराबर 105 मिलियन टन कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकने की उम्मीद है, जिससे 2100 तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को 0.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में मदद मिलेगी, जबकि इससे ओजोन परत की रक्षा को भी सुनिश्चित किया जाना जारी रहेगा।

हाइड्रोफ्लोरोकार्बन ओजोन को कम नुकसान पहुंचाता है लेकिन यह ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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