अनुराग ठाकुर ने सेंट-ट्रोपेज़ में महाराजा रणजीत सिंह और राजकुमारी बन्नू पान देई को श्रद्धांजलि अर्पित की

Image credit: Anurag Thakur Twitter Page

फ्रांस में कान फिल्म समारोह (Cannes Film Festival) की अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान, सूचना और प्रसारण मंत्री श्री अनुराग ठाकुर ने 19 मई को सेंट-ट्रोपेज़ (Saint-Tropez) में एलार्ड स्क्वायर का दौरा किया। उन्होंने वहां पर महाराजा रणजीत सिंह (सिख साम्राज्य के पहले महाराजा), जीन-फ्रेंकोइस एलार्ड/Jean-Francois Allard (रणजीत सिंह सिंह की सेना में एक जनरल) और एलार्ड की पत्नी राजकुमारी बन्नू पान देई (Princess Bannu Pan Dei) को श्रद्धांजलि अर्पित की।

संत-ट्रोपेज़ का हिमाचल प्रदेश से संबंध

  • श्री ठाकुर हिमाचल प्रदेश से सांसद हैं। सेंट-ट्रोपेज़ का हिमाचल प्रदेश राज्य के साथ एक ऐतिहासिक संबंध है।
  • 20 वीं शताब्दी की शुरुआत तक सेंट-ट्रोपेज़ एक सैन्य गढ़ और मछली पकड़ने वाला गांव था। यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ‘ऑपरेशन ड्रैगन’ के हिस्से के रूप में मुक्त होने वाला अपने तट पर पहला शहर था।
  • जनरल जीन-फ्रेंकोइस एलार्ड (Jean-Francois Allard) का जन्म सेंट-ट्रोपेज़ में हुआ था। उन्होंने नेपोलियन की सेना में सेवा दी और वाटरलू की लड़ाई लड़ी।
  • नेपोलियन के पतन के बाद निर्वासन में मजबूर होकर, उन्होंने पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सेवा की, जहाँ उन्हें राजकुमारी बन्नू पान देई से गहरा प्यार हुआ, जो हिमाचल प्रदेश के चंबा में पैदा हुई थीं।
  • उन्होंने शादी की और उनके सात बच्चे थे। जून 1834 में, एलार्ड छुट्टी पर फ्रांस लौट चले गए, लेकिन 18 महीने बाद वापस भारत आ गए । उन्होंने पेशावर में 1839 में अपनी मृत्यु तक महाराजा की सेवा करना जारी रखा।
  • बन्नू पान देई ने ईसाई धर्म अपना लिया और सेंट ट्रोपेज में एलार्ड द्वारा बनाए गए एक बड़े घर में रहने लगीं।
  • राजकुमारी बन्नू और उनके बच्चे 1884 में अपनी मृत्यु तक सेंट-ट्रोपेज़ पैलेस में रह रहीं थीं।
  • भारत-फ्रांस के बढ़ते संबंधों के प्रतीक के रूप में 2016 में सेंट ट्रोपेज में महाराजा और बन्नू पान देई की प्रतिमाओं का अनावरण किया गया था।

फौज-ए-खास

  • जीन-फ्रेंकोइस एलार्ड को नेपोलियन की सेना की तर्ज पर एक मॉडल ब्रिगेड ‘फौज-ए-खास’ (Fauj-i-khas) बनाने का भी श्रेय दिया जाता है।
  • महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया और फ्रांसीसी कमांडर को फौज-ए-खास की कमान सौंपी गई, जिसमें 1826 में 4 पैदल सेना रेजिमेंटों में 10,000 सिपाही, 3 घुड़सवार सेना रेजिमेंट और आधुनिक तोपखाने की एक इकाई शामिल थी।
  • 1827 में इस सेना में 15,000 सिपाही फ्रांसीसी कमान के अधीन थे।
  • फ़ौज-ए-ख़ास के उल्लेखनीय कमांडर जीन-फ़्रैंकोइस एलार्ड और जीन-बैप्टिस्ट वेंचुरा थे।

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