सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्क को “पेशे” के रूप में मान्यता दी
सुप्रीम कोर्ट ने 25 मई को बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय में सेक्स वर्क को पेशा (Sex work as a profession) का दर्जा देते हुए अनुच्छेद 21 का हवाला दिया और कहा कि पेशा चाहे जो भी हो, इस देश में हर व्यक्ति को संविधान एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देता है।
- अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी अन्य नागरिक की तरह यौनकर्मी भी समान रूप से क़ानूनी संरक्षण के हक़दार हैं।
- न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने यह आदेश अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकारों के तहत दिया है।
क्या निर्देश दिया है सुप्रीम कोर्ट ने ?
- अगर कोई यौनकर्मी वयस्क है और अपनी सहमति से ऐसा कर रही है तो, पुलिस को ऐसे किसी भी मामले में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए. चूंकि स्वयं से और सहमति से यौन संबंध गैर कानूनी नहीं है, सिर्फ वेश्यालय चलाना अपराध है।
- पुलिस को उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामले के तहत कार्रवाई भी नहीं करनी चाहिए,
- सेक्स वर्कर के बच्चे को उसकी मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए, सिर्फ इसलिए कि वह वेश्यावृत्ति में लिप्त है।
- मीडिया को सेक्स वर्कर की पहचान सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए, अगर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है या उनके ठिकानों पर छापेमारी की जाती है या उन्हें बचाने का अभियान चलाया जाता है।
- ना तो उनका नाम पीड़िता और ना ही दोषी के तौर पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। उनकी कोई फोटो या वीडियो भी नहीं सार्वजनिक करनी चाहिए, जिससे उनकी पहचान सार्वजनिक हो।
- भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा यौनकर्मियों को स्थायी पता नहीं होने पर भी आधार कार्ड जारी की जाये।
- आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया में यौनकर्मियों की गोपनीयता बनी रहे।
- जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाए तो यौनकर्मियों को गिरफ़्तार या दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे उन सभी यौनकर्मियों को किसी पहचान के प्रमाण पर जोर दिए बिना सूखा राशन प्रदान करें, जिनकी पहचान नाको द्वारा की गई है।
- राज्य सरकारों को उन्हें वोटर आईडी और राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया गया है।
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