व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (WSSV)
वैज्ञानिकों ने एक सुविधाजनक नैदानिक उपकरण विकसित किया है। यह एक जलीय कृषि रोगाणु का पता लगाता है, जिसे व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (White Spot Syndrome Virus: WSSV) के रूप में जाना जाता है।
- आगरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) के वैज्ञानिकों की ओर से पेप्टाइड-आधारित नैदानिक उपकरण को वैकल्पिक जैव पहचान तत्व के रूप में 31 मार्च 2022 को पेटेंट दिया गया है।
- एआरआई, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान है। WSSV द्वारा झींगे (पेनियस वन्नामेई- प्रशांत महासागरीय सफेद झींगा) को संक्रमित किए जाने के चलते इसका भारी नुकसान होता है।
- यह उच्च मान का सुपर-फूड, वायरल और बैक्टीरियल रोगाणुओं की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर अतिसंवेदनशील है और इसके संक्रमित होने की आशंका काफी अधिक है। बेहतर पोषण, प्रोबायोटिक, रोग प्रतिरोधक क्षमता, जल, बीज व चारे का गुणवत्ता नियंत्रण, प्रतिरक्षा- प्रेरक पदार्थ और सस्ते टीके उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- इस क्षेत्र में रोगाणुओं का जल्द और तेजी से पता लगाने वाली तकनीकों से मछली और शेल-फिश पालन में सहायता मिलेगी। इससे देश को विशिष्ट निर्यात राजस्व की प्राप्ति होती है।
- अमेरिका को झींगे का निर्यात करने वाले देशों में भारत एक अग्रणी आपूर्तिकर्ता है।
व्हाइट स्पॉट रोग
- व्हाइट स्पॉट रोग का प्रेरक एजेंट व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस है, जो एक बड़ा डीएनए वायरस है जिसे जीनस व्हिस्पोवायरस/Whispovirus (परिवार निमाविरिडे) का एकमात्र सदस्य है।
- वायरस केवल क्रस्टेशियंस (crustaceans) को संक्रमित करता है और ऐसा लगता है कि किसी अन्य ज्ञात वायरस से संबंधित नहीं है।
- समुद्री, खारे या मीठे पानी के वातावरण से झींगे, झींगा मछली और केकड़ों सहित सभी डिकैपोड क्रस्टेशियंस/decapod crustaceans (ऑर्डर डेकापोडा) को संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील माना जाता है।
- हालांकि, यह रोग मुख्य रूप से फार्मिंग वाले झींगे में एक समस्या रही है। यह परजीवी रोग में शामिल नहीं है, फिनफिश में आम है, जिसे व्हाइट स्पॉट के रूप में भी जाना जाता है।
GS टाइम्स UPSC प्रीलिम्स (PT) करेंट अफेयर्स डेली ऑनलाइन अभ्यास (टेस्ट) के लिए यहाँ क्लिक करें
UPC प्रारंभिक परीक्षा दैनिक/वार्षिक सामान्य अध्ययन-1 अभ्यास (हिंदी माध्यम मानक अभ्यास)