राज्य सरकारें किसी भी धार्मिक और भाषाई समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं-केंद्र
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्य सरकारें अपनी सीमा में हिंदुओं या किसी भी धार्मिक और भाषाई समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं।
- यह दलील दरअसल वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के जवाब में आया है। याचिका में मांग की गयी है कि राज्यों में अल्पसंख्यकों की पहचान तय हो और हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए।
याचिकाकर्ता की दलील
- याचिकाकर्ता की दलील है कि देश के 10 राज्यों में हिंदू भी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा नहीं मिलने से योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है, न ही वे मदरसों की तरह स्कूल खोल सकते हैं।
- यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के लोग लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वे न तो स्कूल-कॉलेज खोल सकते हैं न ही उन्हें चला सकते हैं।
क्या कहा केंद्र सरकार ने ?
- सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा, ‘हिंदू, यहूदी और बहाई धर्म के अनुयायी किसी भी राज्य में अपनी पसंद के स्कूल-कॉलेज बनाकर चला सकते हैं। राज्य सरकारें उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं। महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों को, कर्नाटक सरकार ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमणी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती भाषी समुदायों को अल्पसंख्यक दर्जा दिया है।’
- केंद्र सरकार कहा कि अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को (समवर्ती) है। अगर सिर्फ राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार दिया जाता है तो ये संविधान और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के खिलाफ होगा। संविधान के अनुच्छेद -246 के तहत संसद ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 बनाया है।
- केंद्र ने अपनी दलील में टीएमए पाई (2002) और बाल पाटिल के मामलों का उल्लेख भी किया। टीएमए पाई मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि संविधान के अनुच्छेद 30 के प्रयोजनों के लिए, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को राज्यवार माना जाना चाहिए।
संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 29, 30, 350 (A) और 350 (B) में अल्पसंख्यक शब्द का उल्लेख किया गया है लेकिन इस शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है ।
- अनुच्छेद 29 में कहा गया है कि भारत के किसी भी भाग के निवासी को जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाये रखने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 30 में कहा गया है कि धर्म और भाषा आधारित सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करने और इनका प्रशासन करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 350(A) में भाषा आधारित सभी अल्पसंख्यकों को प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रावधान है।
- अनुच्छेद 350(B) में राष्ट्रपति द्वारा भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त किये जाने का प्रावधान किया गया है।
- केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(C) के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को अधिसूचित किया जाता है। इस एक्ट के तहत 23 अक्टूबर 1993 को मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया। जनवरी 2014 में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया।
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