“भूमि सुपोषण” संकलन का लोकार्पण
उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने 2 मई को नई दिल्ली में अपने निवास पर अक्षय कृषि परिवार द्वारा भूमि सुपोषण और संरक्षण पर चलाए गए राष्ट्रव्यापी अभियान पर आधारित पुस्तक “भूमि सुपोषण” का लोकार्पण किया।
- उन्होंने कहा कि कृषि और ग्रामीण विकास विषयों से संबंधित प्रकाशनों का अनुवाद हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में होना चाहिए जिससे आम किसान उनसे लाभान्वित हो सकें। इस अवसर पर श्री नायडु ने, देश के एक बड़े भाग में, विशेषकर पश्चिमी और दक्कन के क्षेत्र में मिट्टी के सूख कर रेतीली बनने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 15 टन मिट्टी नष्ट हो रही है।
- मिट्टी के स्वास्थ्य को बचाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर किए जा रहे प्रयासों पर संतोष व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने सरकार द्वारा मिट्टी के स्वास्थ्य को बारह (12) पैमानों पर मापने के लिए, मृदा स्वास्थ्य कार्ड के व्यापक पैमाने पर प्रचलित किए जाने का उल्लेख किया।
- उन्होंने कहा कि मिट्टी की जांच के लिए प्रयोगशालाओं के नेटवर्क का निरंतर विस्तार किया जा रहा है। इस वर्ष के बजट में गंगा नदी के किनारों पर रासायनिक खेती के स्थान पर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने का प्रावधान किया गया है।
- पारंपरिक कृषि विकास योजना के तहत प्राकृतिक जैविक खेती की विभिन्न पद्धतियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। देश में लगभग अड़तीस (38) लाख हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है जिसमें लगभग छह (6) लाख किसान जुड़े हैं।
- मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में जैविक खेती का क्षेत्रफल सर्वाधिक है।
- उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह विशेष संतोष का विषय है कि देश के पर्वतीय प्रांतों जहां खेती योग्य भूमि कम है और जोत का आकार भी छोटा होता है, वहां जैविक खेती को किसानों ने सफलतापूर्वक अपनाया है। इससे साबित होता है कि देश के बहुसंख्यक छोटे और सीमांत किसानों के लिए जैविक प्राकृतिक खेती विशेष लाभकारी है।
- उन्होंने कहा कि जैविक खेती अपना कर छोटे किसान भी अपनी लागत कम कर सकते हैं, इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी।
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