जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग ने जारी की अंतिम रिपोर्ट
न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश) की अध्यक्षता वाला परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आदेश को अंतिम रूप दिया गया। इसके बाद राजपत्र अधिसूचना भी 5 मई को प्रकाशित की गई है। परिसीमन आयोग के पदेन सदस्य श्री सुशील चंद्रा (मुख्य चुनाव आयुक्त) और श्री के के शर्मा (राज्य चुनाव आयुक्त, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर) हैं।
मुख्य सिफारिशें
- परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 9(1)(ए) तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 60(2)(बी) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू क्षेत्र का हिस्सा होंगे और 47 कश्मीर क्षेत्र के तहत होंगे।
- पहली बार 9 विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं, जिनमें से 6 जम्मू क्षेत्र में और 3 विधानसभा क्षेत्र कश्मीर घाटी में हैं।
- क्षेत्र में पांच संसदीय क्षेत्र हैं। परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एक एकल केंद्र शासित प्रदेश के रूप में माना है। इसलिए, घाटी में अनंतनाग क्षेत्र और जम्मू क्षेत्र के राजौरी तथा पुंछ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया है।
- इस पुनर्गठन के बाद, प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र होंगे। प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में 18 विधान सभा क्षेत्र होंगे।
- संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों (अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332) तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 14 की उप-धारा (6) और (7) को ध्यान में रखते हुए, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की विधान सभा में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित की जाने वाली सीटों की संख्या की गणना 2011 की जनगणना के आधार पर की गई है।
क्या होता है परिसीमन ?
- परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधानमंडल वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा या सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया।
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के पश्चात संसद विधि द्वारा परिसीमन कानून बनाती है। कानून के लागू होने के पश्चात केन्द्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है। यह परिसीमन आयोग परिसीमन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का सीमांकन करता है।
- निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन, परिसीमन अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अंतर्गत वर्ष 2001 के जनगणना आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
- उपर्युक्त के होते हुए भी, वर्ष 2002 में, 84वें संविधान संशोधन के द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के परिसीमन की प्रक्रिया को कम से कम वर्ष 2026 तक रोक दिया गया।
- परिसीमन का कार्य एक उच्च शक्ति निकाय को सौंपा गया है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है।
- भारत में, इस तरह के परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है – 1952 में, 1963 में, 1973 में और 2002 में। परिसीमन आयोग भारत में एक उच्च शक्ति निकाय है जिसके आदेशों में कानून का बल है और इसे किसी भी अदालत के समक्ष प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।
- ये आदेश इस संबंध में भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट की जाने वाली तारीख पर लागू होते हैं।
- इसके आदेशों की प्रतियां लोक सभा और संबंधित राज्य विधान सभा के समक्ष रखी जाती हैं, लेकिन उनमें किसी संशोधन की अनुमति नहीं है।
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