इंडोनेशिया ने पाम आयल के निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा की
इंडोनेशिया, जो पाम आयल (Palm oil) का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत में सालाना आपूर्ति किए जाने वाले कुल पाम आयल का लगभग 45 प्रतिशत निर्यात करता है, ने 28 अप्रैल से अगले नोटिस तक निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।
- पाम आयल की बढ़ती घरेलू कीमतों को रोकने के लिए निर्यात रोक दिया गया है, जिससे देश में अशांति का माहौल पैदा हो गया है।
- भारत हर साल लगभग 13-13.5 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात करता है, जिसमें से लगभग 8-8.5 मिलियन टन (लगभग 63 प्रतिशत) पाम आयल है। इसमें से 8.85 लाख टन (लगभग 45 प्रतिशत) पाम आयल इंडोनेशिया से और शेष पड़ोसी मलेशिया से आता है। मलेशिया दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पाम आयल निर्यातक है।
- इंडोनेशिया के इस आदेश का मतलब है कि दुनिया में खाद्य तेल तेल की आपूर्ति और भी कम हो जाएग।
- सूरजमुखी तेल में व्यापार – जो भारत में बेहद लोकप्रिय है- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद बाधित हो गया है। पूर्वी यूरोप का काला सागर क्षेत्र (रूस-यूक्रेन ) दुनिया में सूरजमुखी के निर्यात का 75 प्रतिशत से अधिक हिस्सा पर नियंत्रण रखे हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत का लगभग 100,000 टन प्रति माह का आयात आधा होकर रह गया है।
- सोयाबीन तेल – जो पाम आयल के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है – संयुक्त राज्य अमेरिका में कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि देखी गई है।
- भारत कच्चे पाम तेल (सीपीओ), पामोलिन और पीएफएडी (पाम फैटी एसिड डिस्टिलेट) सहित लगभग 8.3 मिलियन टन पाम तेल का आयात करता है, जो लगभग आधा या (4 मिलियन टन) इंडोनेशिया से आता है। मलेशिया पाम तेल (3.8 मिलियन टन) का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, शेष आधा मिलियन थाईलैंड से आता है।
खाद्य तेल संकट की वजह
- यूक्रेन और रूस संघर्ष: यूक्रेन और रूस में सूरजमुखी के तेल के विश्व उत्पादन का लगभग 60% हिस्सा है, और संघर्ष ने आपूर्ति को बुरी तरह प्रभावित किया है।
- जैव ईंधन में उपयोग: वनस्पति तेल की वैश्विक मांग में जैव ईंधन की हिस्सेदारी लगभग 15% है। यह उपयोग, जैसा कि देश जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं, को पहले खाद्य कीमतों को बढ़ाने के लिए दोषी ठहराया गया है।
- कोविड महामारी: लॉकडाउन ने एक नाजुक संतुलित वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को खंडित कर दिया। किसानों से लेकर कारखानों, माल ढुलाई करने वालों और खुदरा विक्रेताओं तक को, इस संकट ने परेशान किया जिससे कीमते आकाश छूने लगी। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक मलेशिया में पाम आयल की फसल इस लॉकडाउन का बड़ा शिकार बना। प्रवासी श्रमिकों के लिए अपने दरवाजे बंद करने के बाद पैदावार लगभग 40 साल के निचले स्तर पर आ गई।
- जलवायु परिवर्तन: अतीत में, वैश्विक बाजार में हर पांच से सात साल में प्राकृतिक आपदा से जुडी आपूर्ति झटके दिखाई देते थे, लेकिन पिछले 10 वर्षों में ये अधिक दिखाई देने लगे हैं। सूखे और पाले जैसी जलवायु परिस्थितियों के साथ कभी-कभी फसलों को अधिक बार प्रभावित करने वाले रोग भी देखे जा रहे हैं।
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