‘मेक इन इंडिया’ के 8 वर्ष पूरे: प्रमुख उपलब्धियां
भारत सरकार का फ्लैगशिप कार्यक्रम मेक इन इंडिया (Make in India), जो निवेश को सुगम बनाता है, इनोवेशन को बढ़ावा देता है, कौशल विकास में वृद्धि करता है तथा विनिर्माण अवसंरचना वर्ग में सर्वश्रेष्ठ का निर्माण करता है, 25 सितंबर, 2022 को आठ वर्ष पूरे कर लिया।
मेक इन इंडिया 2014 में लॉन्च किया गया था। मेक इन इंडिया ने 27 सेक्टरों में पर्याप्त उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें विनिर्माण तथा सेवाओं जैसे रणनीतिक सेक्टर भी शामिल हैं।
मेक इन इंडिया: प्रमुख उपलब्धियां
विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए, भारत सरकार ने एक उदार और पारदर्शी नीति बनाई है जिसमें अधिकांश सेक्टर ऑटोमैटिक रूट के तहत FDI के लिए खुले हैं। भारत में FDI इनफ्लो वित्त वर्ष 2014-15 में 45.15 बिलियन डॉलर था और तबसे लगातार आठ वर्षों तक निरंतर वृद्धि हुई है जो रिकॉर्ड FDI इनफ्लो तक पहुंच गई है।
वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 83.6 बिलियन डॉलर की सर्वाधिक FDI दर्ज किया गया। यह FDI 101 देशों से आया है और भारत में 31 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों तथा 57 सेक्टर में निवेश किया गया है। हाल के वर्षों में आर्थिक सुधारों तथा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की बदौलत, देश चालू वित्त वर्ष के दौरान 100 बिलियन डॉलर FDI आकर्षित करने की राह पर है।
14 प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन स्कीम (PLI) मेक इन इंडिया पहल के लिए एक बड़े प्रोत्साहन के रूप में वित्त वर्ष 2020-21 में लांच की गई। पीएलआई स्कीम से उत्पादन एवं रोजगार के लिए उल्लेखनीय लाभ पैदा होने की उम्मीद है जिनमें एमएसएमई परितंत्र तक लाभ पहुंच सकता है।
विश्व अर्थव्यवस्था में सेमीकंडक्टरों के महत्व को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने देश में सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले, डिजाइन इकोसिस्टम का निर्माण करने के लिए 10 बिलियन डॉलर की एक प्रोत्साहन स्कीम लांच की है।
मेक इन इंडिया पहल को सुदृढ़ बनाने के लिए, भारत सरकार द्वारा कई अन्य उपाय किए गए हैं। सुधार के इन उपायों में कानून में संशोधन, अनावश्यक अनुपालन बोझ कम करने के लिए दिशानिर्देशों एवं विनियमनों का उदारीकरण, लागत में कमी लाना तथा भारत में व्यवसाय करने की सुगमता बढ़ाना शमिल है।
नियमों एवं विनियमनों के बोझिल अनुपालनों को सरलीकरण, विवेकीकरण, गैरअपराधीकरण एवं डिजिटाइजेशन के जरिये कम कर दिया गया है और भारत में व्यवसाय करना और अधिक आसान बना दिया गया है।
इसके अतिरिक्त, श्रम सुधारों से भर्ती और छंटनी में लचीलापन लाया गया है। स्थानीय विनिर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश लागू किए गए हैं। विनिर्माण और विनिवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाये गए कदमों में कंपनी करों में कमी, सार्वजनिक खरीद ऑर्डर तथा चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम शामिल है।
स्थानीय उद्योग को वस्तुओं, कार्यों तथा सेवाओं की सार्वजनिक खरीद में वरीयता प्रदान करने के जरिये स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए एक सक्षमकारी प्रावधान के रूप में सामान्य वित्तीय नियम, 2017 के नियम 153 (iii) के अनुरुप सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) ऑर्डर, 2017 भी जारी किया गया। इस नीति का लक्ष्य केवल व्यापार या असेंबल मदों का आयात करने वाले निकायों की तुलना में सार्वजनिक खरीद गतिविधियां में घरेलू विनिर्माता की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
इसके अतिरिक्त, अनुमोदनों एवं मंजूरियों के लिए निवेशकों को एक एकल डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने के जरिये ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार लाने के लिए सितंबर 2021 में राष्ट्रीय सिंगल विंडो सिस्टम (NSWS) भी सॉफ्ट-लांच किया गया है।
सरकार ने देश में विनिर्माण जोनों को मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के लिए एक प्रोग्राम भी लांच किया है जिसे प्रधानमंत्री गतिशक्ति कार्यक्रम कहा जाता है जो ऐसी अवसंरचना, जो व्यवसाय प्रचालनों में लजिस्टिक संबंधी दक्षता सुनिश्चित करेगा, के सृजन के जरिये कनेक्टिविटी में सुधार लाएगा।
एक जिला एक उत्पाद (ODOP) पहल देश के प्रत्येक जिले से स्वदेशी उत्पादों के संवर्धन और उत्पादन को सुगम बनाने तथा कारीगरों और हस्तशिल्प, हथकरघा, कपड़ा, कृषि तथा प्रसंस्कृति उत्पादों के विनिर्माताओं को एक वैश्विक मंच उपलब्ध कराने और इसके जरिये देश के विभिन्न क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास में और योगदान देने के जरिये ‘मेक इन इंडिया’ विजन की एक और अभिव्यक्ति है।
प्रधानमंत्री ने अगस्त 2020 में अपने मन की बात के प्रसारण के दौरान भारत को एक वैश्विक खिलौना निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने और घरेलू डिजाइनिंग तथा विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ बनाने की इच्छा व्यक्त की।
भारत में खिलौना उद्योग ऐतिहासिक रूप से आयात पर निर्भर रहा है। कच्चे माल, प्रोद्योगिकी, डिजाइन क्षमता आदि की कमी के कारण खिलौनों और उसके कंपोनंट का भारी मात्रा में आयात हुआ। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान, हमारे देश में 371 मिलियन डॉलर (2960 करोड़ रुपये) के बराबर के खिलौनों का आयात हुआ। इन खिलौनों का एक बड़ा हिस्सा असुरक्षित, घटिया, नकली और सस्ते थे।
निम्न गुणवत्ता तथा नुकसानदायक खिलौनों के आयात पर ध्यान देने के लिए तथा खिलौनों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई रणनीतिक कदम उठाये गए हैं। कुछ प्रमुख पहलों में मूलभूत सीमा शुल्क को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 60 प्रतिशत करना, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश का कार्यान्वयन, आयातित खिलौनों की अनिवार्य सैंपल जांच, घरेलू खिलौना विनिर्माताओं को 850 से अधिक BIS लाइसेंस की मंजूरी देना, खिलौना क्लस्टरों का निर्माण आदि शामिल हैं।
प्रचार संबंधी कई प्रमुख पहलों के रूप में वैश्विक आवश्यकताओं के अनुरुप नवोन्मेषण तथा नए समय की डिजाइन को प्रोत्साहित करने के लिए स्वदशी खिलौनों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय खिलौना मेला 2021, टवॉयकैथोन 2021, ट्वॉय बिजनेस लीग 2022 का आयोजन किया गया।
घरेलू खिलौना विनिर्माताओं के प्रयासों की सहायता से कोविड-19 महामारी के बावजूद दो वर्षों से कम समय में भारतीय खिलौना उद्योग की वृद्धि उल्लेखनीय रही है। खिलौनों के आयात में बदौलत वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 70 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।