पैसिव यूथेनेशिया: सुप्रीम कोर्ट ‘लिविंग विल’ और ‘एडवांस डायरेक्टिव’ में संशोधन करेगा
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने 17 जनवरी को भारत में अग्रिम चिकित्सा निर्देश (Advance Medical Directive), या लिविंग विल (living will) के क्रियान्वयन की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति इनवेसिव ट्रीटमेंट से इनकार करने और मृत्यु को स्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है तो फिर इसकी क्या जरुरत है।
क्या कहा कोर्ट ने?
- जस्टिस के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच मार्च 2018 के उस फैसले को संशोधित करने की याचिका पर विचार कर रही हैं, जिसमें निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia) और एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव को कानूनी अनुमति दे दी थी, लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया को बोझिल बना दिया था।
- बेंच ने कहा कि जीवन के अधिकार ( Right to Life) का अवमूल्यन नहीं किया जा सकता है, जबकि इस बात पर जोर दिया गया है कि “गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार’ (right to die with dignity) भी संविधान के अनुच्छेद 21 का एक हिस्सा है।
- अदालत ने नोट किया कि वह पैसिव यूथेनेशिया के लिए ‘लिविंग विल’ दिशानिर्देशों को संशोधित करेगी।
- यह नोट किया गया कि 2018 के जिस फैसले ने मरणासन्न रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाई गई लिविंग विल की मान्यता देते हुए दिशानिर्देशों को निर्धारित किया था, में “थोड़ा सुधार” की आवश्यकता है।
क्या था 2018 का फैसला?
- 2018 में 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ (कॉमन कॉज़ बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया) ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के विस्तार के रूप में गरिमा के साथ मरने का अधिकार एक मौलिक अधिकार भी शामिल है।
- न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति को निष्क्रिय इच्छामृत्यु का कानूनी अधिकार प्रदान कर दिया था।
एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव
- अग्रिम चिकित्सा निर्देश या एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव ऐसे कानूनी दस्तावेज हैं जो ऐसे समय में किसी व्यक्ति की चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने की इच्छा बताते हैं जब वह व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी या चोट के कारण चिकित्सा निर्णय लेने में सक्षम नहीं होता है। इन्हें अग्रिम निर्देश कहा जाता है क्योंकि वह व्यक्ति बताने में अक्षम होने से पहले अपनी वरीयताओं को बता दिया होता है।
एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के 2 प्राथमिक प्रकार हैं:
- लिविंग विल: इसमें व्यक्ति चिकित्सा उपचार और जीवन के अंत की देखभाल के लिए प्राथमिकताएं व्यक्त करता है। लिविंग विल किसी व्यक्ति के जीवन को समाप्त करने का निर्णय लेने वाला एक दस्तावेज है, यदि वह मरणासन्न रूप से बीमार हो जाता है, वेजिटेटिव स्टेज में चला जाता है और उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं होती है।
- स्वास्थ्य देखभाल के लिए ड्यूरेबल पावर ऑफ़ अटॉर्नी: इसके तहत कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसकी तरफ से निर्णय लेने के लिए नामित करता है।
सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Active and Passive euthanasia)
इच्छामृत्यु (यूथेनेशिया) दो प्रकार के होते हैं– सक्रिय इच्छामृत्यु (एक्टिव यूथेनेशिया) और निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) है। इन दोनों में काफी अंतर है।
- सक्रिय इच्छामृत्यु: यह तब होता है जब चिकित्सा पेशेवर या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर कुछ ऐसा करता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु: यह तब होता है जब रोगी की मृत्यु हो जाती है क्योंकि चिकित्सा पेशेवर या तो रोगी को जीवित रखने के लिए जरुरी उपाय कुछ नहीं करते हैं, या जब वे रोगी को जीवित रखने वाली सपोर्ट सिस्टम को बंद कर देते हैं। उदाहरण; लाइफ़-सपोर्ट मशीन (डायलिसिस और वेंटिलेटर) बंद कर देना, फीडिंग ट्यूब काट देना, जीवन-बढ़ाने वाला ऑपरेशन न करना, जीवित रखने वाली दवाएं न देना।