हिकलिन टेस्ट (Hicklin Test) क्या है?
कोई दृश्य या प्रस्तुति या प्रकाशन अश्लील है या नहीं, इसका मानक निर्धारित करता है हिकलिन टेस्ट (Hicklin Test)। इसे लंदन में उन्नीसवीं सदी के कोर्ट रिकॉर्डर बेंजामिन हिकलिन के नाम पर रखा गया है।
रेजिना बनाम हिकलिन (1868) मामले में, लॉर्ड चीफ जस्टिस अलेक्जेंडर कॉकबर्न ने कोर्ट ऑफ क्वीन्स बेंच के लिए निर्णय लिखते समय अश्लीलता की एक व्यापक परिभाषा दी।
इसके अनुसार उस प्रस्तुति को अश्लील कहा जा सकता है जो खुले दिमाग वाले लोगों को कलुषित करे और भ्रष्ट करे।
भारत में वर्ष 2014 तक, न्यायपालिका हिकलिन परीक्षण का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए करती रही है कि कोई दृश्य, कार्य या प्रस्तुति या प्रकाशन अश्लील है या नहीं।
रंजीत डी उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1964) के मामले में डीएच लॉरेंस की ‘लेडी चैटरलीज लवर’ पर प्रतिबंध लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिकलिन टेस्ट का उपयोग किया गया था।
हालांकि, 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने अवीक सरकार और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य मामलों की सुनवाई करते हुए हिकलिन टेस्ट को स्वीकार नहीं किया। यह मामला बोरिस बेकर और उनके मंगेतर की अर्ध-नग्न तस्वीर के प्रकाशन से संबंधित था।
इस मामले में अपने फैसले में, अदालत ने कहा, “यह देखते हुए कि क्या कोई विशेष तस्वीर, आलेख या किताब अश्लील है या नहीं, समकालीन लोकाचार और राष्ट्रीय मानकों के सम्मान को ध्यान में रखा जाना चाहिए, न कि अतिसंवेदनशील या संवेदनशील व्यक्तियों के समूह के मानक का।” अदालत ने भी कहा कि तस्वीर को “पूरी तरह से लिया जाना चाहिए” और इस संदर्भ में यह देखा जाना चाहिए कि वह क्या संदेश देना चाहता है।