राज्य को समान नागरिक संहिता लागू करने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने की शक्ति है-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी को कहा कि राज्य सरकारों के पास समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code: UCC) को लागू करने की व्यवहार्यता की जांच करने की शक्ति है।
क्या कहा सर्वोच्च न्यायालय ने?
कोर्ट ने कहा कि संविधान न केवल केंद्र सरकार बल्कि राज्यों को भी विवाह, तलाक और गोद लेने जैसे विषयों पर कानून बनाने की अनुमति देता है।
UCC के कार्यान्वयन पर ड्राफ्ट तैयार करने के लिए पैनल स्थापित करने के उत्तराखंड और गुजरात सरकारों के कदमों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसी संहिता के प्रासंगिक पहलुओं की जांच करने के लिएराज्य सरकारों द्वारा गठित समितियां में कुछ भी गैर-संवैधानिक नहीं है।
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे, ने समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 (Entry 5 of the Concurrent List) का उल्लेख किया, जिसके तहत केंद्र और राज्य, दोनों को विवाह और तलाक, शिशुओं और नाबालिगों, गोद लेने, वसीयत, निर्वसीयत और उत्तराधिकार पर संयुक्त रूप से कानून बनाने का अधिकार है।
बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 162 का भी हवाला दिया, जो बताता है कि राज्य की कार्यकारी शक्ति ऐसे मामलों तक विस्तारित होगी जिसमें उसे कानून बनाने का अधिकार है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि यद्यपि संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन यह केवल एक निर्देशक सिद्धांत है जो सभी समुदायों और धर्मों के लिए एक सामान्य कानून की ओर बढ़ने के लिए राज्य को अनिवार्य रूप से बाध्य नहीं करता है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता वकील की दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि संविधान या किसी भी कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी राज्य को समान नागरिक संहिता की व्यवहार्यता का परिक्षण करने से रोक सके।