पारसनाथ सम्मेद शिखरजी: इको-टूरिज्म गतिविधियों पर रोक
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 5 जनवरी को झारखंड में पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य (Parasnath Wildlife Sanctuary) के आसपास के क्षेत्र में पर्यटन और इको-टूरिज्म गतिविधियों की अनुमति वापस ले ली है।
केंद्र सरकार का यह फैसला जैन समुदाय के सदस्यों के साथ पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की बैठक की बाद आयी है। निर्णय के तहत पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 की उप-धारा (3) के तहत इको सेंसिटिव ज़ोन अधिसूचना के प्रावधानों की प्रभावी निगरानी के लिए, केंद्र सरकार ने एक निगरानी समिति का गठन किया है।
प्रमुख तथ्य
- पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में सम्मेद शिखरजी पर्वत क्षेत्र (Sammed Shikharji Parvat Kshetra) शामिल है, जो जैन समुदाय के लिए एक पवित्र जगह है।
- 1,350 मीटर ऊंचा सम्मेद शिखरजी, या सिर्फ शिखरजी जैनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों ने यहां निर्वाण प्राप्त किया था। इस पहाड़ी का नाम भी 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर रखा गया है।
- झारखंड में पारसनाथ पहाड़ियों को इको-टूरिज्म स्थल के रूप में विकसित करने के झारखंड सरकार के लंबे समय से चले आ रहे प्रस्ताव के बाद भारत के कई हिस्सों में जैन समुदाय के सदस्यों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था।
- हालांकि अब, आदिवासी भी इस जमीन पर दावा करने और इसे मुक्त करने की मांग को लेकर मैदान में कूद पड़े हैं। संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) कहते हुए उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है।
पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य-पर्यावरणीय-संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Zone)
- पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना तत्कालीन बिहार राज्य द्वारा 1984 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत की गई थी।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत 2019 में झारखंड राज्य सरकार के परामर्श से भारत सरकार द्वारा ने पारसनाथ के आसपास के क्षेत्र को इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) अधिसूचित किया गया था।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, इको सेंसिटिव ज़ोन, किसी ‘संरक्षित क्षेत्र’ के आसपास एक बफर ज़ोन है। इको सेंसिटिव ज़ोन आसपास की गतिविधियों को प्रतिबंधित, विनियमित और बढ़ावा देकर संरक्षित क्षेत्रों के लिए “शॉक एब्जॉर्बर” के रूप में कार्य करते हैं।
- जहां संरक्षित क्षेत्र (protected zones) में लगभग किसी भी मानव गतिविधि की अनुमति नहीं होती है, परंतु अधिनियम के खंड 3 के तहत इको सेंसिटिव ज़ोन को पर्यटन को बढ़ावा देने की अनुमति है, बशर्ते संबंधित राज्य सरकार द्वारा केंद्र को अनुमति प्राप्त गतिविधियों को निर्दिष्ट करने वाला एक मास्टर प्लान दिया जाए।