तमिलनाडु के राज्यपाल के खिलाफ को-वारंटो रिट विचारणीय नहीं है: मद्रास उच्च न्यायालय
मद्रास उच्च न्यायालय ने 5 जनवरी को तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि के खिलाफ दायर अधिकार-पृच्छा रिट (quo warranto) को खारिज कर दिया।
- याचिकाकर्ताओं ने पुडुचेरी में ओरोविल फाउंडेशन के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए उस अधिकार पर सवाल उठाया था जिसके तहत वह यह पद संभाल रहे थे।
- कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की प्रथम खंडपीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत प्रदत रक्षोपाय (immunity enjoyed) के मद्देनजर राज्यपाल के खिलाफ रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।
- उन्होंने उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को रिट याचिका को क्रमांकित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।
- एक हलफनामे में, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि संविधान का अनुच्छेद 158 (2) राज्यपालों को लाभ के किसी अन्य पद को धारण करने से रोकता है, और इसलिए, राज्यपाल को उस अधिकार की व्याख्या करने के लिए कहा जाना चाहिए जिसके तहत ओरोविल में नियुक्ति के बाद भी वह राज्यपाल का पद धारण किये हुए हैं।
- एक हलफनामे में, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 158 (2) राज्यपालों को लाभ के किसी अन्य पद धारण करने से रोकता है।
क्या हैं संवैधानिक प्रावधान?
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को क्रमशः अनुच्छेद 32 और 22 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण (Certiorari) और अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) रिट जारी करने की शक्ति है। अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) शब्द का अर्थ है कि आपका अधिकार क्या है। अधिकार-पृच्छा किसी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक कार्यालय के गैर कानूनी रूप से प्राप्त करने से रोकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 158(2) में कहा गया है कि राज्यपाल लाभ का कोई अन्य पद (office of profit) धारण नहीं करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद 361 में भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को कुछ प्रकार के संरक्षण उपलब्ध हैं।
- अनुच्छेद 361 (1): राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और निर्वहन के लिए या उसके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।
- अनुच्छेद 361 (2): राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही न तो शुरू की जा सकती है और न ही जारी रखी जा सकती है।
- अनुच्छेद 361 (3): राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास की कोई प्रक्रिया, उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत से जारी नहीं होगी।