सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2016 की नोटबंदी की अधिसूचना को सही ठहराया
सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी, 2023 को 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों को बंद करने (विमुद्रीकरण/demonetisation) के केंद्र के 2016 के फैसले को वैधानिक ठहराया।
4:1 के बहुमत से दिए फैसला में केंद्र के सभी तर्कों को स्वीकार लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों को बंद करने केंद्र की 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध थी और आनुपातिकता के परीक्षण (test of proportionality) के अनुरूप थी।
- आनुपातिकता का अर्थ है कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रशासनिक कार्रवाई अधिक कठोर नहीं होनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि गौरैया को मारने के लिए कैनन का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रकार यह सिद्धांत साध्य के साथ साधन को संतुलित करने का प्रयास करता है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने ?
- रिकॉर्ड से, ऐसा प्रतीत होता है कि निर्णय लेने से पहले 6 महीने से अधिक समय तक केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बीच परामर्श प्रक्रिया चली थी।
- केवल इसलिए कि केंद्र सरकार ने RBI के केंद्रीय बोर्ड को विमुद्रीकरण की सिफारिश करने पर विचार करने की सलाह दी है और केंद्र सरकार की सलाह पर केंद्रीय बोर्ड ने नोटबंदी के प्रस्ताव पर विचार किया है और इसकी सिफारिश की है और इसके बाद केंद्र सरकार ने एक कदम उठाया है, यह मानने का आधार नहीं हो सकता है कि RBI अधिनियम की धारा 26 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया था।
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) केंद्र को RBI के “केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर” मुद्रा को विमुद्रीकृत करने की शक्ति देती है।
- सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक ‘सिफारिश’ शब्द का अर्थ केंद्रीय बोर्ड और केंद्र सरकार के बीच एक परामर्श प्रक्रिया से है।”
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटों को बैन करने के मामले में केंद्र सबसे अच्छा न्यायाधीश है क्योंकि उसके पास नकली मुद्रा, काला धन, आतंक के वित्तपोषण और मादक पदार्थों की तस्करी के संबंध में सभी इनपुट मौजूद होते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विमुद्रीकरण की अधिसूचना को 2016 के अध्यादेश द्वारा मान्य किया गया है और बाद में 2017 के अधिनियम रूप दिया गया और इस तरह इस पर संसद की मुहर लगी है।
- केंद्र सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है और संसद बदले में देश के नागरिकों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए संसद ने कार्यकारी यानी सरकार की कार्रवाई पर अपनी मुहर लगा दी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायालय अपने विवेक से कार्यपालिका के विवेक का स्थान नहीं ले सकता। निर्णय लेने की प्रक्रिया को केवल इसलिए दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि प्रस्ताव केंद्र से आया था।
- पांच सदस्यीय खंडपीठ में एकमात्र न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, हालांकि, बहुमत के फैसले से असहमत थीं, उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत जारी सरकार की अधिसूचना गैरकानूनी थी।
विमुद्रीकरण
- 8 नवंबर, 2016 की शाम को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम टेलीविजन संबोधन में 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों को तत्काल प्रभाव से बंद करने के आदेश दिए और इसके बदले में 2,000 रुपये और 500 रुपये के नए नोट पेश किए।
- इस निर्णय के खिलाफ 58 याचिकाओं के एक समूह ने चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि RBI अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।