क्या है ‘खटमबंद कला’?
श्रीनगर में जन्मे फैशन डिजाइनर जुबैर किरमानी ने पश्मीना शॉल को वॉल हैंगिंग में बदल दिया है, जो इस फैब्रिक के लिए एक दुर्लभ विकल्प की और ले जाता है। उल्लेखनीय है कि सदियों से, कश्मीर के महंगे लेकिन उत्तम और जटिल रूप से बुने हुए पश्मीना शॉल या तो पार्टियों में शान के प्रतीक रहे हैं या फिर अभिजात वर्ग के वार्डरोब में छिपे दुर्लभ संग्रह।
- परन्तु अब, जुबैर किरमानी इस आकर्षक और अल्ट्रा-फाइन पश्मीना शॉल को दीवारों में नक्काशी के रूप में इस्तेमाल कर नया इतिहास रच रहे हैं। इसमें काम आ रहा है कश्मीर घाटी का प्रसिद्ध ‘खटमबंद कला’ (Khatamband art)। श्री किरमानी का लक्ष्य भारत और विदेशों में बढ़ते बाजार इस नयी शैली को ले जाना है।
‘खटमबंद कला’ (Khatamband art)
- खटमबंद लकड़ी के छोटे टुकड़ों (अधिकांशतया अखरोट या देवदार की लकड़ी) को ज्यामितीय पैटर्न में एक दूसरे में फिट करके छत बनाने की एक कला है। यह प्रक्रिया मशीनों के माध्यम से नहीं की जाती है, बल्कि श्रमसाध्य रूप से हाथ से तैयार की जाती है और वह भी बिना किसी कील का उपयोग किए।
- ऐसा माना जाता है कि 14 वीं शताब्दी के दौरान प्रसिद्ध संत शाह-ए-हमदान द्वारा खटमबंद कला को कश्मीर लाया गया था, जिन्होंने कई अनुयायियों के साथ हिमालय घाटी का दौरा किया था, जिसमें ईरान के खटमबंद कलाकार भी शामिल थे।
- इसके तहत प्रसंस्कृत लकड़ी को टुकड़ों में काट दिया जाता है और पुष्प और ज्यामितीय डिजाइनों में छत पर लगा दिया जाता है। अब जुबैर किरमानी इस शैली के लिए पश्मीना शॉल का इस्तेमाल कर रहे हैं।