उत्तराखंड के राज्यपाल ने उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम को मंजूरी दी
उत्तराखंड के राज्यपाल ने उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम (State’s Freedom of Religion (Amendment) Act) को मंजूरी दे दी है। राज्य अब संशोधित विधेयक की औपचारिक अधिसूचना जारी करेगा जिसके बाद जबरन धर्मांतरण “अपराध” की श्रेणी में आएगा।
उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम प्रमुख प्रावधान
संशोधित विधेयक के अनुसार, राज्य में जबरन, लालच या धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराना अपराध होगा। राज्य में गैरकानूनी धर्मांतरण एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है जिसके लिए 10 साल तक की जेल की सजा दी जा सकती है।
नए कानून के तहत 50 हजार रुपए जुर्माना अनिवार्य किया गया है।
धर्मांतरण का दोषी पाए जाने पर पीड़ित व्यक्ति को 5 लाख रुपये तक का भुगतान भी करना होगा।
इस कानून की धारा 2 में जोड़े गए एक नए खंड के अनुसार, “सामूहिक धर्मांतरण” ऐसा मामला होगा जहां “दो या दो से अधिक व्यक्तियों का धर्म परिवर्तित किया जाता है” और “गैरकानूनी धर्म परिवर्तन” का अर्थ है “कोई भी धर्मांतरण जो राज्य के कानून के अनुसार नहीं है”।
कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बल, प्रलोभन या कपटपूर्ण साधन द्वारा एक धर्म से दूसरे में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा। कोई व्यक्ति ऐसे धर्म परिवर्तन के लिए किसी को प्रेरित या षड्यंत्र नहीं करेगा।
इस क्लॉज में 10 साल तक की जेल और 50,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
संशोधनों में किसी महिला, नाबालिग या अनुसूचित जाति या जनजाति समुदाय के सदस्यों का धर्मांतरण करने वालों को 10 साल तक की जेल की सजा का भी प्रावधान है।
बता दें कि राज्य के धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने इस कानून के उद्देश्यों और कारणों को बताते हुए कहा था की भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के तहत, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, प्रत्येक धर्म के समान महत्व को मजबूत करने के लिए उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 में संशोधन आवश्यक है।