भारत में छह बड़े एयरशेड हैं, और प्रदूषण से निपटने के लिए दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग जरुरी-विश्व बैंक
विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छह बड़े एयरशेड (airsheds) हैं, और उनमें से कुछ पाकिस्तान के साथ साझा किए गए हैं, जिनके बीच वायु प्रदूषक (air pollutants) गति करते हैं। ये एयरशेड एक-दूसरे की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
दक्षिण एशिया में छह प्रमुख एयरशेड हैं: (1) पश्चिम/मध्य इंडो-गंगेटिक प्लेन जिसमें पंजाब (पाकिस्तान), पंजाब (भारत), हरियाणा, राजस्थान का हिस्सा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश शामिल हैं। 2) मध्य/पूर्वी इंडो-गंगेटिक प्लेन : बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बांग्लादेश; (3) मध्य भारत: ओडिशा/छत्तीसगढ़; (4) मध्य भारत: पूर्वी गुजरात/पश्चिमी महाराष्ट्र; (5) उत्तरी / मध्य सिंधु नदी का मैदान: पाकिस्तान, अफगानिस्तान का हिस्सा; और (6) दक्षिणी सिंधु का मैदान और आगे पश्चिम: दक्षिण पाकिस्तान, पश्चिमी अफगानिस्तान पूर्वी ईरान में फैला हुआ है।
एयरशेड का प्रदूषण में योगदान
जहां सरकार के मौजूदा उपाय पार्टिकुलेट मैटर (PM) को कम कर सकते हैं, लेकिन इसमें महत्वपूर्ण कमी तभी संभव है जब एयरशेड में फैले क्षेत्र परस्पर सहयोग के द्वारा नीतियों को लागू करें।
जब वायु की दिशा मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर थी, तो भारतीय पंजाब में 30% वायु प्रदूषण पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से आया और बांग्लादेश के सबसे बड़े शहरों (ढाका, चटगाँव, और खुलना) में औसतन 30% वायु प्रदूषण का स्रोत भारत था।
कुछ वर्षों में, सीमाओं के पार दूसरी दिशा में पर्याप्त प्रदूषण प्रवाहित हुआ।
इसका मतलब यह है कि भले ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 2030 तक वायु प्रदूषण नियंत्रण के सभी उपायों को लागू कर दिया जाये, लेकिन जब तक दक्षिण एशिया के अन्य हिस्से अपनी वर्तमान नीतियों को जारी रखते हैं, यह प्रदूषण जोखिम को 35 µg/m3 से कम नहीं कर पायेगा।
यदि दक्षिण एशिया के अन्य भागों में भी सभी संभव उपाय किये जाते हैं तभी प्रदूषण स्तर को 35 µg/m3 से नीचे लाया जा सकेगा।
प्रमुख उपाय
विश्व बैंक की रिपोर्ट ने विभिन्न देशों के बीच नीति कार्यान्वयन और सहयोग के अलग-अलग स्तर के साथ वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई परिदृश्यों का विश्लेषण किया।
वर्तमान में 60% से अधिक दक्षिण एशियाई क्षेत्र में PM2.5 प्रदुषण का सालाना औसत 35 µg/m3 के आसपास हैं। सिंधु-गंगा के मैदान (IGP) के कुछ हिस्सों में यह 100 µg/m3 तक बढ़ गया जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित 5 µg/m3 की ऊपरी सीमा का लगभग 20 गुना है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस स्थिति से निपटने के लिए सबसे अधिक लागत प्रभावी उपाय एयरशेड के बीच पूर्ण समन्वय की जरुरत है। इस प्रयास से दक्षिण एशिया में PM 2.5 के औसत जोखिम को घटाकर घटाकर 30 µg/m³ कर देगा और इसमें $278 मिलियन प्रति माइक्रोग्राम/mᶾ की लागत आएगी लेकिन इससे प्रतिवर्ष 50,000 जीवन बचायी जा सकती है।
भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के वैज्ञानिकों को ‘एयरशेड एप्रोच’ अपनाने के लिए वायु प्रदूषण पर एक संवाद स्थापित करना चाहिए।
आसियान, नॉर्डिक क्षेत्रों और चीन में इसी तरह से समस्या का समाधान किया गया है।