खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने ‘ग्लोबल स्टेटस ऑफ ब्लैक सॉइल’ रिपोर्ट प्रकाशित की
विश्व मृदा दिवस (5 दिसंबर, 2022) के अवसर पर, खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने ग्लोबल स्टेटस ऑफ ब्लैक सॉइल (Global status of black soils) शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो इस तरह की पहली रिपोर्ट भी है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
रिपोर्ट के मुताबिक काली मिट्टी, जो वैश्विक आबादी को भोजन प्रदान करती है, खतरे में है।
अधिकांश काली मृदा कार्बनिक कार्बन (soil organic carbon: SOC) स्टॉक का कम से कम आधा खो रही है। इन मृदाओं ने अपने मूल मृदा कार्बनिक कार्बन स्टॉक का 20 से 50 प्रतिशत खो दिया है।
ये कार्बन को ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमंडल में छोड़ रहे हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है।
भूमि उपयोग परिवर्तन, अस्थिर प्रबंधन पद्धतियां और कृषि रसायनों का अत्यधिक उपयोग इसके लिए जिम्मेदार हैं।
काली मिट्टी के लाभ
काली मृदा की अंतर्निहित उर्वरता इन्हें कई देशों के लिए फ़ूड बास्केट बनाती है और वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिए आवश्यक मानी जाती है।
काली मिट्टी खनिज मिट्टी होती है जिसकी सतह काली होती है।
इसे रेगुर या काली कपासी मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। भारत के दक्कन के पठार में पाई जाने वाली काली मिट्टी में क्ले की मात्रा अधिक होती है और यह लौह युक्त होती है।
यह आर्गेनिक कार्बन से समृद्ध होती है जो कम से कम 25 सेमी गहरी होती है। अधिकांश काली मिट्टी मध्यम से गंभीर क्षरण प्रक्रियाओं के साथ-साथ पोषक तत्वों के असंतुलन, अम्लीकरण और जैव विविधता के नुकसान से पीड़ित हैं।
काली मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती है और उच्च नमी भंडारण क्षमता के कारण उच्च कृषि उपज प्रदान कर सकती है।काली मिट्टी में उगाई जाने वाली सबसे आम फसलें कपास, गन्ना, गेहूं आदि हैं।
ये वैश्विक मृदा का 5.6 प्रतिशत हिस्सा हैं और दुनिया के एसओसी स्टॉक का 8.2 प्रतिशत इसमें शामिल हैं: लगभग 56 बिलियन टन कार्बन।
काली मिट्टी वैश्विक आबादी के 2.86 प्रतिशत का हैबिटैट है। इसमें 17.36 प्रतिशत फसल भूमि, वैश्विक मृदा कार्बनिक कार्बन स्टॉक का 8.05 प्रतिशत और वैश्विक फसल भूमि में मृदा कार्बनिक कार्बन स्टॉक का 30.06 प्रतिशत प्राप्त होता है ।