दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता: रक्षा मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय कानून और UNCLOS का पालन करने को कहा
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 23 नवंबर, 2022 को कंबोडिया के सिएम रीप में 9वीं आसियान रक्षा मंत्री- प्लस की बैठक (ASEAN Defence Ministers’ Meeting: ADMM) में भाग लिया।
ADMM-प्लस दस आसियान देशों और इसके आठ संवाद सहयोगी देशों के रक्षा मंत्रियों की एक वार्षिक बैठक है। आठ संवाद सहयोगी देशों में शामिल हैं; भारत, अमेरिका, रूस, चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया।
दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता: उद्देश्य
रक्षा मंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कहा कि दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता (Code of Conduct in the South China Sea) पर चल रही आसियान-चीन वार्ता पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्र विधि पर कन्वेंशन (UNCLO) के अनुरूप होनी चाहिए और उन राष्ट्रों के हित को दरकिनार नहीं करना चाहिए जो इन वार्ताओं में शामिल नहीं हैं।
बता दें कि दक्षिण चीन सागर के उपयोग पर आचार संहिता (COC) का उद्देश्य विवादित जलमार्ग में दक्षिण चीन सागर में संघर्ष के खतरों को कम करना है जहां चीन के विशाल समुद्री और प्रादेशिक दावे आसियान के चार सदस्य देशों: वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस और ब्रुनेई के साथ टकराते हैं।
आचार संहिता बनाने के प्रयास 1992 में शुरू हुआ जब आसियान ने दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवादों पर अपना पहला बयान जारी किया था। 1996 में आचार संहिता की अवधारणा का समर्थन करते हुए, उन्होंने 2002 में दक्षिण चीन सागर के पक्षकारों के आचरण पर एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। फिर 2011 में दिशानिर्देश का मसौदा अपनाया गया।
वर्ष 2017 में फिर से शुरू हुई आचार संहिता पर वार्ता की प्रगति धीमी रही है, आंशिक रूप से कोविड-19 महामारी के कारण।
दक्षिण चीन सागर विवाद
दक्षिण चीन सागर, जो चीन, ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच स्थित है, विश्व स्तर पर अत्यधिक आर्थिक महत्व का है।
दुनिया का लगभग एक-तिहाई शिपिंग इस गिलयारे से होकर गुजरती है, साथ ही फिशिंग क्षेत्र भी है।
यह सैन्य और व्यावसायिक रूप से भारत के लिए भी एक महत्वपूर्ण मार्ग है। दक्षिण चीन सागर जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों के साथ भारत के व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और ऊर्जा आपूर्ति की कुशल खरीद में सहायता करता है।
भारत इस सागर में अपतटीय ब्लॉकों में तेल और गैस की खोज में भी शामिल है, जिसके कारण चीनी अधिकारियों के साथ गतिरोध हो गया है।
“नाइन-डैश लाइन” मानचित्र के तहत, चीन अधिकांश दक्षिण चीन सागर को अपने संप्रभु क्षेत्र के रूप में दावा करता है। चीन के इस दावे का इस क्षेत्र में उसके पड़ोसियों और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विरोध किया जाता है। हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका इस समुद्र में कोई दावा नहीं है, लेकिन चीनी आक्रमण के खिलाफ लड़ाई में छोटे देशों का समर्थन करता है।
गौरतलब है कि चीन लंबे समय से इस बात पर जोर देता रहा है कि इस मसले पर क्षेत्रीय दावेदारों के बीच विवादों को सुलझाया जाना चाहिए और बाहरी शक्तियों को दक्षिण चीन सागर के मुद्दों से दूर रहना चाहिए। चीन का इशारा अमेरिका की ओर है।
हालांकि अमेरिका दक्षिण चीन सागर में दावेदार नहीं है, लेकिन अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति के लिए इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण मानता है और नियमित रूप से “नेविगेशन की स्वतंत्रता” संचालन और क्षेत्र में अधिक नौसैनिक अभ्यास करता रहा है।
अमेरिका ने चीन से 2016 के एक आर्बिट्रेशन के फैसले का पालन करने का भी आह्वान किया है जिसने दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर चीन के दावों को अमान्य कर दिया थी और इस क्षेत्र में उसके व्यवहार को “भड़काऊ” कहा था।
स्प्रैटली द्वीपसमूह (Spratly Islands) विवाद
चीन, ताइवान, वियतनाम, फिलीपींस और मलेशिया के बीच स्प्रैटली द्वीपसमूह (Spratly Islands) और निकटवर्ती भौगोलिक फीचर्स जैसे कोरल रीफ्स, सेज़ आदि के स्वामित्व को लेकर एक क्षेत्रीय विवाद चल रहा है। हालांकि स्प्रैटली द्वीप समूह काफी हद तक निर्जन हैं, लेकिन संभावना है कि वहां अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा भंडार हो सकता है।
पार्सेल द्वीपसमूह (Paracel archipelago) विवाद
पार्सेल द्वीपसमूह (Paracel archipelago) 130 द्वीपों और प्रवाल भित्तियों का एक संग्रह है और दक्षिण चीन सागर में स्थित है, जो चीन और वियतनाम से लगभग समान दूरी पर है।
चीन का कहना है कि यह उसका संप्रभु क्षेत्र है और इसके लिए ऐतिहासिक दावे प्रस्तुत करता है। दूसरी ओर, वियतनाम का कहना है कि कम से कम 15वीं शताब्दी के ऐतिहासिक ग्रंथों से पता चलता है कि द्वीप उसके क्षेत्र का हिस्सा थे।
1999 में, ताइवान भी पूरे द्वीपसमूह पर अपना दावा करते हुए मैदान में कूद गया।