भारत की आर्कटिक नीति 2022

’भारत और आर्कटिक: सतत विकास के लिए साझेदारी का निर्माण’ शीर्षक से भारत की आर्कटिक नीति के छह स्तंभ हैं जिनमें भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग को सुदृढ़ करना, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक और मानव विकास, परिवहन और संपर्क, संचालन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा राष्ट्रीय आर्कटिक क्षेत्र में क्षमता निर्माण शामिल हैं।

  • भारत की आर्कटिक नीति को लागू करने में अकादमिक, अनुसंधान समुदाय, व्यवसाय और उद्योग सहित अनेक हितधारक शामिल होंगे।

भारत और आर्कटिक

  • आर्कटिक के साथ भारत का जुड़ाव एक सदी पहले से है जब पेरिस में फरवरी 1920 में ’स्वालबार्ड संधि’ पर हस्ताक्षर किए गए थे और आज भारत आर्कटिक क्षेत्र में कई वैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसंधान कर रहा है।
  • भारत आर्कटिक समुद्र विज्ञान, वातावरण, प्रदूषण और सूक्ष्म जीव विज्ञान से संबंधित अध्ययनों में भी सक्रिय रूप से शामिल रहा है। पच्चीस से अधिक संस्थान और विश्वविद्यालय वर्तमान में भारत में आर्कटिक अनुसंधान में शामिल हैं।
  • वर्ष 2014और 2016 में, कोंग्सफजॉर्डन में भारत की पहली मल्टी-सेंसर मूरेड वेधशाला IndARC और ग्रुवेबडेट, एनवाई एलेसंड में सबसे उत्तरी वायुमंडलीय प्रयोगशाला को आर्कटिक क्षेत्र में लांच किया गया था।
  • वर्ष 2022 तक, भारत ने आर्कटिक में तेरह अभियानों का सफलतापूर्वक संचालन किया है। भारत आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा रखने वाले तेरह देशों में से एक है, जो एक उच्च स्तरीय अंतर-सरकारी मंच है और आर्कटिक की सरकारों तथा आर्कटिक के स्वदेशी लोगों के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान करती है।
  • भारतीय आर्कटिक स्टेशन ‘हिमाद्री’ नॉर्वे के स्पिट्सबर्गेन द्वीप के न्य एलेसंड में स्थित है और 2008 से भारतीय वैज्ञानिक जांच के केंद्र के रूप में कार्य करता है।

भारत की आर्कटिक नीति का उद्देश्य निम्नलिखित एजेंडा को बढ़ावा देना है-

  • आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान और अन्वेषण, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, समुद्री और आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं तथा दक्षताओं को मजबूत करना। सरकार और शैक्षणिक, अनुसंधान तथा व्यावसायिक संस्थानों के भीतर संस्थागत और मानव संसाधन क्षमताओं को मजबूत किया जाएगा।
  • आर्कटिक में भारत के हितों की तलाश में अंतर-मंत्रालयी समन्वय।
  • भारत की जलवायु, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा पर आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की समझ को बढ़ाना।
  • वैश्विक समुद्री मार्गों, ऊर्जा सुरक्षा और खनिज संपदा के दोहन से संबंधित भारत के आर्थिक, सैन्य और सामरिक हितों पर आर्कटिक में बर्फ पिघलने के प्रभावों पर बेहतर विश्लेषण, भविष्यवाणी तथा समन्वित नीति निर्माण में योगदान देना।
  • ध्रुवीय क्षेत्रों और हिमालय के बीच संबंधों का अध्ययन करना।
  • वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान से विशेषज्ञता हासिल करते हुए विभिन्न आर्कटिक मंचों के तहत भारत और आर्कटिक क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को मजबूत करना।
  • आर्कटिक परिषद में भारत की भागीदारी बढ़ाना और आर्कटिक में जटिल संचालन संरचनाओं, प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों तथा क्षेत्र की भू-राजनीति की समझ में सुधार करना।

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