सदन में वोट के बदले कैश स्वीकार करने वाले सांसदों को अभियोजन से उन्मुक्ति के फैसले का केंद्र ने किया समर्थन
हाल में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 1998 के उस निर्णय का समर्थन करते हुए उसे “संवैधानिक रूप से सही” (constitutionally correct) सिद्धांत कहा जिसमें संसद या राज्य विधानसभाओं में अपने वोटों के बदले रिश्वत स्वीकार करने वाले सांसदों और विधायकों को अभियोजन से बचाता है।
क्या कहा केंद्र सरकार ने?
न्यायमूर्ति एसए नज़ीर की अगुवाई वाली एक संविधान पीठ के समक्ष बहस करते हुए, केंद्र सरकार ने झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वतखोरी (JMM bribery) मामले में 1998 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार का विरोध इस आधार पर किया कि किसी मामले के सम्पूर्ण तथ्य (gross facts) भी सांसदों/विधायकों को सदन के पटल पर अपने कृत्यों के लिए संविधान के तहत दी गई प्रतिरक्षा यानी अभियोजन से उन्मुक्ति (immunity granted to the legislators) को वापस लेना उचित नहीं ठहराएंगे।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वर्ष 1998 के फैसले में पांच-न्यायाधीशों की पीठ में से तीन न्यायाधीशों के बहुमत के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया, और कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत विधायकों को दी गई प्रतिरक्षा के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
बता दें कि वर्ष 1998 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि सांसदों को संसद में उनके कृत्यों के लिए संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत अभियोजन से उन्मुक्ति की छूट दी गई है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वतखोरी मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (1998)
दरअसल, जुलाई 1993 में, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता अजॉय मुखोपाध्याय ने संसद के मानसून सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाया। यह प्रस्ताव 14 मतों के अंतर से गिर गया।
हालाँकि, 1996 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को एक शिकायत मिली जिसमें आरोप लगाया गया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM ) और जनता दल के अजीत सिंह के गुट के कुछ सांसदों को तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार को वोट देने के लिए रिश्वत दी गई थी।
इस बीच, कथित तौर पर मामले में शामिल सांसदों ने आपराधिक मुकदमे से उन्मुक्ति की मांग की यह तर्क देते हुए उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर संसद के अंदर मतदान किया था।
बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदनों, उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियों और विशेषाधिकारों का प्रावधान करता है। अन्य बातों के अलावा, यह प्रावधान कहता है, “संसद या उसकी किसी समिति में संसद के किसी भी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या वोटिंग के मामले में वह किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा”।
अनुच्छेद 194 राज्यों में विधायकों को समान छूट प्रदान करता है।
वर्ष 1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सांसदों के पक्ष में फैसला सुनाया। अपने 3:2 के फैसले में, अदालत ने फैसला सुनाया कि जिन सांसदों ने रिश्वत स्वीकार की और अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान किया, वे आपराधिक मुकदमे से मुक्त होंगे क्योंकि कथित रिश्वतखोरी “संसदीय वोट के संबंध में” थी।
हालाँकि, अदालत ने फैसला सुनाया कि अजीत सिंह, जो कथित रूप से साजिश में शामिल थे, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया, समान उन्मुक्ति (अभियोजन से उन्मुक्ति) के हकदार नहीं थे।