अंधेरी (पूर्व) विधानसभा उपचुनाव: 14.79% मतदाताओं ने NOTA को प्राथमिकता दी
मुंबई में अंधेरी (पूर्व) विधानसभा उपचुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले कुल मतदाताओं में से कम से कम 14.79 प्रतिशत ने नोटा/NOTA (None of The Above) का विकल्प चुना।
नोटा के पक्ष में 12,806 वोट पड़े (14.79 प्रतिशत), जो जीतने वाले उम्मीदवार के बाद दूसरे स्थान पर रहा। राकांपा और कांग्रेस समर्थित शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की उम्मीदवार ऋतुजा रमेश लटके ने 3 नवंबर को हुए उपचुनाव में कुल 86,570 मतों में से 66,530 मत हासिल कर जीत हासिल की। ऋतुजा लटके को कुल वोटों का 76.85 फीसदी वोट मिला।
भारत में NOTA का इतिहास
सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने के मतदाताओं के अधिकार को बरकरार रखा और कहा कि यह राजनीतिक व्यवस्था को स्वच्छ करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में उम्मीदवारों की सूची के अंत में NOTA का विकल्प होता है।
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भारत में NOTA का विकल्प शुरू किया गया था।
इस प्रकार, भारत नकारात्मक मतदान करने वाला 14वां देश बन गया। हालाँकि, भारत में NOTA ‘राइट टू रिजेक्ट’ प्रदान नहीं करता है।
NOTA के मतों की संख्या की परवाह किए बिना अधिकतम वोट पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है।
NOTA विकल्प का इस्तेमाल पहली बार 2013 में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में किया गया था। राज्यों के चुनावों में 15 लाख से अधिक लोगों ने इस विकल्प का इस्तेमाल किया था। हालाँकि, यह आंकड़ा कुल मतदाताओं के 1.5% से कम था।
NOTA विकल्प के अस्तित्व में आने से पहले, नकारात्मक वोट डालने वाले लोगों को एक रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करना होता था और एक अलग पेपर बैलेट पर अपना वोट डालना होता था।
चुनाव आचार नियम, 1961 की धारा 49 (O) के तहत, एक मतदाता फॉर्म 17A में अपना चुनावी क्रमांक दर्ज कर सकता था और नकारात्मक वोट डाल सकता था। इसके बाद पीठासीन अधिकारी फॉर्म में एक टिप्पणी करता और उस पर मतदाता के हस्ताक्षर करवाता था। यह धोखाधड़ी या वोटों के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया गया था। हालाँकि, इस प्रावधान को SC द्वारा असंवैधानिक माना गया था क्योंकि यह मतदाता की पहचान की रक्षा नहीं करता था।