सुप्रीम कोर्ट ने EPFO पेंशन योजना में 2014 के संशोधन को सही ठहराया
सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर को वर्ष 2014 में संशोधित EPFO कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के उस प्रावधान को बरकरार रखा, जो पेंशन गणना के लिए एक कर्मचारी के मूल वेतन को 15,000 रुपये प्रति माह की ऊपरी सीमा निर्धारित करता है न कि वास्तविक वेतन के। हालांकि न्यायालय ने वर्ष 2014 के कुछ संशोधनों को रद्द कर दिया है।
मुख्य बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने केरल, राजस्थान और दिल्ली के उच्च न्यायालयों के फैसले को चुनौती देने वाली भविष्य निधि संगठन और केंद्र सरकार की अपीलों को सही ठहराते हुए उच्च न्यायालयों के निर्णयों को रद्द कर दिया है। उच्च न्यायालयों ने 2014 के ईपीएस संशोधन को रद्द कर दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने उन कर्मचारियों को चार महीने का समय दिया है जो योजना में नामांकन नहीं कर सके और ऐसा करने के हकदार हैं।
- बता दें कि विभिन्न प्रतिष्ठानों के कर्मचारी कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 (अधिनियम) द्वारा कवर किए जाते हैं, जो एक कवर किए गए प्रतिष्ठान के प्रत्येक कर्मचारी के नाम पर एक भविष्य निधि खाता प्रदान करता है।
- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा चलाई जाने वाली कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) एक रिटायरमेंट स्कीम है। EPFO के वर्ष 1952 के मूल कानून में पेंशन जैसी कोई योजना नहीं थी। EPFO द्वारा यह योजना 1995 में लॉन्च की गयी।
- कर्मचारियों को पेंशन प्रदान करने के लिए एक योजना के निर्माण को अधिकृत करते हुए, अधिनियम में धारा 6 ए को शामिल किया गया था। इस योजना में मौजूदा और नए EPFO सदस्य शामिल हो सकते हैं।
- EPS का उद्देश्य कर्मचारियों को 58 वर्ष की आयु के बाद पेंशन प्रदान करना है। योजना के अनुसार, अधिकतम वेतन जिसके आधार पर पेंशन की गणना की जानी थी, वह थी प्रति माह 6,500 रूपये।
- नियोक्ता और कर्मचारी, दोनों ही, कर्मचारी भविष्य निधि फंड में कर्मचारी की सैलरी में से 12-12 फीसदी का समान योगदान करते हैं। कर्मचारी के अंशदान का पूरा हिस्सा EPF में जाता है। वहीं, नियोक्ता द्वारा किए गए अंशदान का 8.33 फीसदी EPS में और 3.67 फीसदी हर महीने EPF में जाता है।
- EPS को 1 सितंबर 2014 से संशोधित किया गया, जिसने अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 15,000 रुपये प्रति माह सीमित कर दिया था। 1 सितंबर 2014 को मौजूदा सदस्यों को एक विकल्प देने के लिए EPS में संशोधन किया गया था, ताकि वे अपने नियोक्ताओं के साथ संयुक्त रूप से 15,000 रुपये प्रति माह से अधिक वेतन पर वास्तविक वेतन का 8.33 फीसदी अंशदान कर सके।
- हालांकि, इस मामले में, कर्मचारी को 15,000 रुपये से अधिक वेतन पर 1.16 प्रतिशत की दर से और अंशदान देने का प्रावधान किया गया। यह भी कि संशोधन की तारीख से छह महीने के भीतर इस तरह के एक नए विकल्प का प्रयोग करना होगा।
- सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जिस संशोधन के तहत सदस्यों को कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के प्रावधानों के तहत 15,000 रुपये प्रति माह से अधिक के अपने वेतन का 1.16 प्रतिशत अतिरिक्त अंशदान देना आवश्यक है, वह अनुचित है। इसलिए न्यायालय ने अतिरिक्त अंशदान को निरस्त कर दिया है।
- बेंच ने आरसी गुप्ता बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त के अपने 2016 के फैसले को बरकरार रखा जिसमें यह माना गया था कि योजना के तहत विकल्प का लाभ उठाने के लिए कोई कट-ऑफ तारीख नहीं हो सकती है। न्यायालय ने विकल्प को चुनने के लिए चार माह और अधिक समय दिया है।