सीलबंद कवर न्यायशास्त्र (sealed cover jurisprudence)
सर्वोच्च न्यायालय की दो अलग-अलग बेंचों ने 15 मार्च को अदालतों में सरकार द्वारा अपनाई गई “सीलबंद कवर न्यायशास्त्र” (sealed cover jurisprudence) पर अपनी राय दी है।
- अदालत इस बात को लेकर आलोचनात्मक थी कि कैसे सरकार और उसकी एजेंसियां याचिका दायर करने वाले के साथ कंटेंट साझा किए बिना सीधे अदालत में सीलबंद लिफाफों में रिपोर्ट दर्ज करती हैं।
- सीलबंद कवर रिपोर्ट में निहित कंटेंट के बारे में अंधेरे में रखे जाने के कारण, याचिकाकर्ता यह नहीं जान पाते कि वे किस विषय पर अपना बचाव पक्ष रखे, क्योंकि उनके पास सरकार द्वारा प्रस्तुत तथ्य सार्वजानिक नहीं होता है।
- यह आमतौर पर इस आधार पर किया जाता है कि कंटेंट की प्रकृति अत्यधिक संवेदनशील है, और यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा या “लोक व्यवस्था” (पब्लिक आर्डर) को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
- राज्य की एजेंसियों द्वारा दिया गया एक और कारण यह दिया जाता है कि ज्यादातर मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में, इस तरह की व्यवस्था से जांच प्रभावित होती है। मीडिया वन मामले में केंद्र अपनी फाइलें सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपने के लिए लाया था। कोर्ट ने पूछा कि सरकार चैनल के सामने फाइलों का खुलासा क्यों नहीं कर पाई।
- न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत ‘सील्ड कवर ज्यूरिसप्रूडेंस ‘ के बड़े मुद्दे की जांच करना चाहेगी, खासकर मीडिया वन जैसे मीडिया घरानों पर प्रतिबंध की पृष्ठभूमि में।
- न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसे मामलों में केवल एक “छोटा अपवाद” है जिसमें अदालत, पक्षों के लाभ के लिए नहीं चाहती कि वे सरकारी फाइलें देखें कि जैसे बाल यौन शोषण के मामले में।