ऑफ-बजट उधारियां (off-budget borrowings) क्या हैं?

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने चालू वित्त वर्ष से राज्य-विशिष्ट वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट कार्ड (state-specific fiscal sustainability) तैयार करने का निर्णय लिया है, जहां ऑफ-बजट देनदारियों (off-budget liabilities) और छिपी सब्सिडी (hidden subsidies) को सटीकता के साथ कैप्चर किया जाएगा।

CAG का यह कदम कुछ राज्यों पर भारी कर्ज और उनमें से कुछ के बीच सरकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए ऑफ-बजट उधारियां (off-budget borrowings) का सहारा लेने की बढ़ती प्रवृत्ति के मद्देनजर आया है।

जुलाई 2022 में RBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा कर्ज वाले राज्य पंजाब, राजस्थान और बिहार थे।

वित्त वर्ष 2022 के संशोधित अनुमान के अनुसार, पंजाब का ऋण-राज्य सकल घरेलू उत्पाद अनुपात (debt-GSDP) सबसे अधिक 53.3% था, इसके बाद राजस्थान में 39.5%, बिहार (38.6%), केरल (37%) और पश्चिम बंगाल (34.4%) का स्थान था।

छिपी हुई सब्सिडी कभी-कभी योजनाओं में शामिल होती है। उदाहरण के लिए, कुछ राज्य अपनी बिजली वितरण फर्मों (डिस्कॉम्स) के माध्यम से घरों या किसानों को बिजली बिलों पर छूट देते हैं, लेकिन राज्य के बजट में नहीं दिखाए जाते हैं और जांच से बच जाते हैं। पंद्रहवें वित्त आयोग ने सिफारिश की है कि पारदर्शिता के हित में राज्यों को ऑफ-बजट उधारों को स्पष्ट रूप से दिखाना चाहिए।

ऑफ-बजट उधार ((off-budget borrowings) वे ऋण होते हैं जो सीधे केंद्र या राज्य सरकार द्वारा नहीं लिए जाते हैं, बल्कि किसी अन्य सार्वजनिक उपक्रम द्वारा लिए जाते हैं जो केंद्र सरकार/राज्य सरकार के निर्देश पर उधार लेते हैं। इस तरह के उधार का उपयोग सरकार की व्यय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है।

केंद्र सरकार की ऑफ-बजट उधारियां

चूंकि ऋण पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग द्वारा ली जाती है इसलिए इसकी देनदारी औपचारिक रूप से केंद्र पर नहीं होती है, इसलिए ऋण को राष्ट्रीय राजकोषीय घाटे में शामिल नहीं किया जाता है।

यह ऋण देश के राजकोषीय घाटे को स्वीकार्य सीमा के भीतर रखने में मदद करता है।

सरकार किसी कार्यान्वयन एजेंसी को ऋण के माध्यम से या बांड जारी करके बाजार से आवश्यक धन जुटाने के लिए कह सकती है। उदाहरण के लिए, खाद्य सब्सिडी केंद्र के प्रमुख खर्चों में से एक है। 2020-21 बजट प्रस्तुति में, सरकार ने फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया को खाद्य सब्सिडी बिल के लिए बजट से केवल आधी राशि का ही भुगतान किया। शेष का भुगतान राष्ट्रीय लघु बचत कोष से ऋण के माध्यम से पूरा किया गया था।

अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने भी सरकार के लिए उधार लिया है। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों को पूर्व में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर के लिए भुगतान करने के लिए कहा गया था।

राज्य की ऑफ-बजट उधारियां

ऑफ-बजट उधार राज्य सरकार की संस्थाओं, स्पेशल परपज व्हीकल, आदि द्वारा लिए गए ऋणों को कहा जाता है, जहां मूलधन और ब्याज राज्य सरकार के अपने बजट से चुकाया जाएगा, न कि उन संस्थाओं के कैश फ्लो से या अर्जित राजस्व से जिसने कर्ज लिया है।

मानदंडों के अनुसार, राज्य सरकारों को किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित सीमा से अधिक नए उधार लेने के लिए केंद्र की मंजूरी लेनी होती है।

ऑफ-बजट उधारियां सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों या वैधानिक संस्थाओं के माध्यम से राज्य के बजट से बाहर ऋण को रूट करके ली जाती है।

इस प्रकार राज्य सरकार एक वित्तीय वर्ष में राज्यों के लिए निर्धारित शुद्ध उधार सीमा से बचने में सफल हो जाती हैं। हालाँकि इसे चुकाने की जिम्मेदारी राज्य की होती है।

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