सुप्रीम कोर्ट का ‘बिजो इमैनुएल निर्णय’ क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर को कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में एक विभाजित फैसला ( split verdict) सुनाया, और इस मामले को उचित निर्देशों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों को खारिज कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने हाई कोर्ट के निर्णय को सही नहीं माना।
जस्टिस धूलिया ने कहा कि कर्नाटक सरकार की आदेश की वैधता का परीक्षण अनुच्छेद 19(1)(A) और 25(1) के आधार पर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आवश्यक धार्मिक प्रथाओं की यह पूरी अवधारणा, इस विवाद के निपटान के लिए आवश्यक नहीं थी। उच्च न्यायालय ने वहां गलत रास्ता अपनाया।
यह केवल अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 25(1) का प्रश्न था। हिजाब पहनना पसंद की बात है।
न्यायमूर्ति धूलिया ने यह भी कि यह लड़कियों की शिक्षा से जुड़ा मामला है। यह भी कि लड़कियों को अपनी शिक्षा के साथ-साथ अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम का बोझ उठाना पड़ता है।
अपने फैसले में, न्यायमूर्ति धूलिया ने बिजो इमैनुएल मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि यह “इस मुद्दे को पूरी तरह से कवर करता है”।
बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य
बता दें कि अगस्त 1986 में, जस्टिस ओ चिन्नप्पा रेड्डी और जस्टिस एम एम दत्त की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य (Bijoe Emmanuel & Ors vs State Of Kerala & Ors) मामले में, यहोवा के विटनेस सम्प्रदाय (Jehovah’s Witness sect) के तीन बच्चों को सुरक्षा प्रदान की, जो स्कूल के राष्ट्र गान में शामिल नहीं हुए थे।
अदालत ने कहा था कि बच्चों को जबरन राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करना उनके धर्म के मौलिक अधिकार (fundamental right to religion) का उल्लंघन है।
बच्चों के पिता वी.जे. इमैनुएल ने याचना की थी कि यहोवा के विटनेस सम्प्रदाय के लिए केवल यहोवा की उपासना की जानी चाहिए। चूंकि राष्ट्रगान एक प्रार्थना थी, इसलिए उनके बच्चे सम्मान के साथ खड़े हो जाते थे, लेकिन उनके विश्वास ने उन्हें इसे गाने की अनुमति नहीं दी।