पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) क्या है?
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), प्रवर्तन निदेशालय (ED) और राज्य पुलिस ने 22 सितंबर को 15 राज्यों में की गई तलाशी के दौरान एक राष्ट्रव्यापी कार्रवाई में, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India: PFI) के 109 नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया।
गिरफ्तारियां केरल (22), उसके बाद कर्नाटक (20) और महाराष्ट्र (20), तमिलनाडु (10), असम (10) और उत्तर प्रदेश (8) में हुई हैं। यह कार्रवाई इस इनपुट पर आधारित थी कि आरोपी आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग कर रहे हैं, हथियार प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहे हैं और प्रतिबंधित संगठनों में शामिल होने के लिए लोगों को कट्टरपंथी बना रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है कि PFI सुरक्षा एजेंसियों की रडार में आया है। इसके ज्यादातर सदस्य मुस्लिम हैं, और खुद को ऐसा नव-सामाजिक आंदोलन कहता है जो भारत के हाशिए के वर्गों के सशक्तिकरण के लिए प्रयास कर रहा है।
वर्ष 2010 में PFI के कुछ सदस्यों ने केरल के एर्नाकुलम जिले में एक प्रोफेसर टी.जे. जोसेफ की दाहिनी हथेली काट दिया था। श्री जोसेफ को कॉलेज परीक्षा के प्रश्न पत्र के निशाना बनाया गया था जिसे उन्होंने सेट किया था। प्रश्न पत्र में पैगंबर के कुछ संदर्भ थे, जिसे हमलावरों ने अपमानजनक कहा था।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया क्या है?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India: PFI) की स्थापना 2007 में तीन मुस्लिम समूहों – केरल में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (National Democratic Front in Kerala), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (Karnataka Forum for Dignity) और तमिलनाडु में मनिथा नीति पासराय (Manitha Neethi Pasarai) के विलय के एक साल बाद हुई थी।
तीनों संगठनों को एक साथ लाने का निर्णय नवंबर 2006 में केरल के कोझीकोड में एक बैठक में लिया गया था। PFI के गठन की औपचारिक घोषणा 16 फरवरी, 2007 को तथाकथित “एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस” के दौरान बेंगलुरु में एक रैली में की गई थी।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर प्रतिबंध के बाद उभरे PFI ने खुद को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश किया है जो अल्पसंख्यकों, दलितों और हाशिए के समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ता है।
वर्ष 2009 में, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) नाम का एक राजनीतिक संगठन मुस्लिम, दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों के राजनीतिक मुद्दों को उठाने के उद्देश्य से PFI से निकला।
PFI की केरल में सबसे अधिक उपस्थिति रही है, जहां पर बार-बार हत्या, दंगा, डराने-धमकाने और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रखने का आरोप लगाया जाता रहा है।
वर्ष 2012 में ओमन चांडी के नेतृत्व वाली केरल सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि PFI “प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का ही पुनरुत्थान के अलावा कुछ नहीं था”। सरकारी हलफनामे में कहा गया कि पीएफआई कार्यकर्ता हत्या के 27 मामलों में शामिल थे, जिनमें ज्यादातर सीपीएम और आरएसएस के कार्यकर्ता थे, और इसका मकसद सांप्रदायिक था।
वर्ष 2017 में, NIA ने PFI पर एक विस्तृत डोजियर तैयार किया, लेकिन इसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत “गैरकानूनी संगठन” घोषित नहीं किया जा सका क्योंकि अधिकारी इस विषय पर विभाजित थे।
जून 2022 में ED ने PFI पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए दावा किया कि उसे 2009 से 60 करोड़ रुपये से अधिक दान प्राप्त किये हैं, जिसमें 30 करोड़ रुपये से अधिक की नकद जमा राशि भी शामिल है।